




पूर्वजों को विदा करते समय भावुक हुए स्वजन!*
बगहा अनुमंडल अंतर्गत मधुबनी प्रखंड स्थित राजकीय कृत हरदेव प्रसाद इंटरमीडिएट कॉलेज के पूर्व प्राचार्य पं०भरत उपाध्याय ने पितृ विसर्जन के अवसर पर पितरों को प्रणाम करते हुए कहा कि सभी पितर सम्पूर्ण जगत् का कल्याण करें,
हमारी संस्कृति ने वृद्धों को चलता फिरता इतिहास माना। पितरों के प्रति अटूट श्रद्धा विश्व में कहीं और नहीं है। पितृपक्ष में श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करना एवं प्रतिदिन तर्पण करना अद्भुत है। इन मूल्यों ने इस राष्ट्र को गहराई दी। इस परंपरा को नई पीढ़ी कैसे संभालेगी, उन्हें बताना हमारी जिम्मेदारी है।
नई पीढ़ियां सूचनाओं से परिपूर्ण हैं पर भावनाओं से रिक्त होती जा रही हैं। पितृपक्ष स्मृति और संवेदना से ओत-प्रोत होता है। याद रखिए जब पीढ़ियां अपनी स्मृति खो देती है, तब वे केवल उपभोक्ता बनती हैं संस्कृति की नहीं ,बाजार की ।और तब संवेदना की कोई विकल्प नहीं रह जाती ,वह उतनी ही आवश्यक हो जाती है ,जितनी तपते मरुस्थल में एक बूंद जल या छाया ।
सनद रहे!प्यार किसी संयंत्र में निर्मित नहीं हो सकता, भावनाओं का किसी फैक्ट्री में उत्पादन नहीं हो सकता और स्नेह देने वाले स्पर्श के एहसास की इंजीनियरिंग नहीं हो सकती। यह समय केवल परंपरा निभाने का नहीं ,उसे समझने और समझाने का है ।हमें चाहिए कि हम आने वाली पीढ़ियों को केवल विधियां न सिखाएं ,उन्हें कर्मकांड की जटिलता में न उलझाएं ,बल्कि भावनाओं का महत्व समझाएं। शास्त्रों में स्पष्ट कहा है कि-पितर:वाक्यम् इच्छन्ति,भावात् तृप्यन्ति देवता:। पूर्वज विधियों से नहीं भावों से तृप्त होते हैं। नई पीढ़ी को अपने पूर्वजों के विषय में बताना चाहिए। कि वे अपने पुरखों कि भौतिक और अमूर्त दोनों विरासतों के प्रति कृतज्ञ हों। तभी पितृपक्ष परंपरा में कायम रहेगा।