विश्वकर्मा ने हमें बनाया कुछ और हम बन गए कुछ! :- पं० भरत उपाध्याय

0
104



Spread the love

जब सृष्टि का आरम्भ हुआ, तो भगवान विष्णु अपनी शेषशय्या पर थे।ऐसी कथा है कि भगवान विष्णु की नाभि से एक कमल निकला और उस कमल से ब्रह्मा जी प्रकट हुए ब्रह्मा जी के पुत्र वास्तुदेव थे। वास्तुदेव का विवाह अंगिरसी से हुआ और उन्हीं के गर्भ से भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ। बताया जाता है कि जन्म से ही भगवान विश्वकर्मा अद्भुत वास्तुकला व शिल्पकला के ज्ञाता थे।*सनातनी धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान विश्वकर्मा ने देवताओं के लिए कई दिव्य और अद्भुत रचनाएँ कीं। उन्होंने भगवान विष्णु के लिए सुदर्शन चक्र का निर्माण किया।त्रेतायुग में उन्होंने सोने की लंका नगरी का निर्माण किया। द्वापरयुग में उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण के लिए द्वारका नगरी और पांडवों के लिए इंद्रप्रस्थ का निर्माण किया। उन्होंने राक्षसों के लिए त्रिपुरा नगरी का भी निर्माण किया, जिसे बाद में भगवान शिव ने नष्ट कर दिया। वे देवताओं के शिल्पकार व दुनिया के पहले वास्तुकार (इंजीनियर) के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने संसार भी बनाया,लेकिन जिस जीव का जन्म संसार में हुआ उसने संसार को अपने स्वार्थ के अनुसार बनाना शुरू कर दिया।अब परिणाम भी सामने है, प्रकृति का दोहन व शोषण मनुष्य सबसे पहले करता है। उसे अपना सुख सुविधा चाहिए,*चाहे प्रकृति के साथ कुछ भी हो जाए स्वार्थी मानव को उससे कोई मतलब नहीं है।

मतलब यूं समझिए-

बहुत सीमेंट है साहब! आजकल की हवाओं में,दिल कब पत्थर हो जाता है पता ही नहीं चलता।*गुजरते लम्हों में सदियां तलाश करता हूं, प्यास इतनी है कि नदियां तलाश करता हूँ। यहां पर लोग गिनाते है खूबियां अपनी, मैं अपने आप में कमियां तलाश करता हूं। इस विश्वकर्मा पूजा पर कम से कम शपथ तो लीजिए कि प्रकृति के साथ अपना परिवार, समाज व कुटुंब के साथ व्यवहार अच्छा करें, संस्कार अच्छा करें निश्चित मानिए बहुत कुछ बदलेगा क्योंकि बदलने की जरूरत आ चुकी है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here