




आत्मा का साक्षात्कार केवल वाणी, बुद्धि या अध्ययन से नहीं, बल्कि समर्पण, श्रद्धा और तप से संभव है। नवरात्र के दिन तप और आत्मसंयम की प्रतीक है। वे हमें सिखाती हैं कि मुक्ति का मार्ग बाहरी संसार से भागने में नहीं, बल्कि भीतर की साधना और धैर्य में है।जब मन संयमित और हृदय श्रद्धामय हो जाता है, तभी आत्मा अपनी ज्योति से प्रकाशित होती है और मुक्ति का द्वार खुलता है। तांत्रिक ग्रन्थों में यह बताया गया है कि नवदुर्गा नवग्रहों के लिए ही प्रवर्तित हुईं है। नौरत्नचण्डीखेटाश्च जाता निधिनाह्ढवाप्तोह्ढवगुण्ठ देव्या:।। अर्थात् नौ रत्न, नौ ग्रहों की पीड़ा से मुक्ति, नौ निधि की प्राप्ति, नौ दुर्गा के अनुष्ठान से सर्वथा सम्भव है। सूर्य कृत पीड़ा की शान्ति के लिए शैलपुत्री, चन्द्रमा कृत पीड़ा की शान्ति के लिए ब्रह्मचारिणी,
मंगल कृत पीड़ा की शान्ति के लिए चन्द्रघण्टा,बुध कृत पीड़ा की शान्ति के लिए कूष्माण्डा,गुरु कृत पीड़ा की शान्ति के लिए स्कन्दमाता,शुक्र कृत पीड़ा की शान्ति के लिए कात्यायनी,शनि कृत पीड़ा की शान्ति के लिए कालरात्रि,राहु कृत पीड़ा की शान्ति के लिए महागौरी, तथा केतु कृत पीड़ा की शान्ति के लिए सिद्धिदात्री..अर्थात् जिस ग्रह की पीड़ा, कष्ट हो उससे संबंधित माँ दुर्गा के स्वरूप की पूजा विधि-विधान से करने पर अवश्य ही शान्ति प्राप्त होती है। नौ ग्रहों का दुष्प्रभाव कम करने के लिए करें दुर्गा पूजा, नवरात्र पर मां के शक्ति स्वरूपों की पूजा की जाती है और इसी समय नवग्रहों के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए भी मां की विशेष पूजा करने का प्रावधान माना गया है। मां की नौ शक्तियों को जागृत करने के लिए मंत्र जाप करें। मां दुर्गा की पूजा शक्ति उपासना का पर्व है और माना जाता है कि नवरात्र में ब्रह्मांड के सारे ग्रह एकत्रित होकर सक्रिय हो जाते हैं, कई बार इन ग्रहों का दुष्प्रभाव मानव जीवन पर भी पड़ता है। इसी दुष्प्रभाव से बचने के लिए नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा की जाती है, मां की पूजा करने का विधि-विधान होता है और इस दौरान मां के विशेष मंत्रों का जप करने से नवग्रह शांत होते हैं।