




जिला ब्यूरो, विवेक कुमार सिंह
बेतिया/वाल्मीकिनगर। वीटीआर के वन क्षेत्र में गैंडा ट्रैकर बेचन बीन पर उस वक्त जानलेवा हमला हुआ जब वह ड्यूटी से घर लौट रहा था। आरोपी सतेंद्र कुमार ने अपने साथी के साथ मिलकर उसे बुरी तरह पीटा। बताते चलें कि सतेंद्र को लकड़ी चोरी के आरोप में पकड़ा गया था जिसके कारण वह बेचन से नाराज चल रहा था। घायल ट्रैकर का इलाज जारी है और उसने इस घटना की जानकारी वाल्मीकिनगर रेंजर को दे दी है।वाल्मीकिनगर वन क्षेत्र में गैंडा ट्रैकर पर हमला करने की घटना सामने आई है। बुधवार देर शाम गैंडा ट्रैकर बेचन बीन पर उसके ही गांव के कुछ लोगों ने हमला कर दिया। यह घटना वाल्मीकिनगर के भेड़िहारी बीट के जंगल में घटी।बेचन बीन अपनी ड्यूटी खत्म कर घर लौट रहा था, जब रास्ते में चकदहवा गांव निवासी सतेंद्र कुमार और उसके अन्य साथी ने उसे जंगल में घेर लिया और बेरहमी से पिटाई कर दी। घायल वनकर्मी किसी तरह वहां से भागकर वन कार्यालय पहुंचा, आनन फानन उसे प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र वाल्मीकिनगर ले जाया गया।इसके बाद, उसे बेहतर इलाज के लिए पीएचसी हरनाटांड़ रेफर कर दिया गया। चिकित्सक डा. विकास कुमार ने बताया कि बेचन बीन को आंख और सिर के पास चोटें आई हैं, हालांकि उसकी हालत अब खतरे से बाहर है।
लकड़ी चोरी के आरोप में पकड़ाया था युवक
घायल गैंडा ट्रैकर ने बताया कि आरोपित सतेंद्र कुमार को लकड़ी चोरी के मामले में पकड़ा गया था। तब से वह उसे धमकी देता आ रहा था। बेचन ने कहा कि आरोपी अक्सर दबंगई दिखाने की कोशिश करता है और उसे जान से मारने की धमकी देता है। घटना की पूरी जानकारी रेंजर को दे दी गई है।
जंगल की सुरक्षा के लिए तैनात वनकर्मी ही असुरक्षित
वनकर्मी ही वनों और वन्यजीवों की सुरक्षा करते हैं। मानव-पशु संघर्ष को कम करने में अहम योगदान देते हैं। ये अगर पैदल जंगलों में गश्त न करें तो वन्यजीव तस्करों और शिकारियों के हौसले और बुलंद हो जाएंगे। दुर्भाग्य से, वे दयनीय परिस्थितियों में रहते हैं, जबकि मुश्किल से मैदान पर जाने वाले अधिकारी सभी सुख-सुविधाओं को साथ आराम से रहते हैं।
12 घंटे लगातार काम
एक वनकर्मी ने बताया कि कुछ वन क्षेत्रों में, पेयजल और बेहतर उपकरण जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं। हम 12 घंटे लगातार काम करते हैं और अवैध गतिविधियों की जांच के लिए जंगलों में किलोमीटर दर किलोमीटर पैदल चलते हैं। हमें अधिकारियों का भी ध्यान रखना पड़ता है। अक्सर, हम आगे की कतार में होते हैं। हर समस्या के लिए हमें ही सबसे पहले जिम्मेदार ठहराया जाता है।
जंगल के बीच नेटवर्क नहीं, असहाय महसूस करते हैं वन कर्मी
जंगल के बीच नेटवर्क नहीं होता है। जंगल में काम करने वाले अधिकारी व कर्मचारियों को किसी भी प्रकार की सूचना देने के लिए बाहर आना पड़ता है। इस बीच अगर लकड़ी या फिर वन्य प्राणी तस्करों से सामना हो जाए तो वनकर्मी असहाय महसूस करते हैं। वनों की रक्षा करने के लिए वनकर्मी हैं लेकिन इनकी रक्षा कौन करेगा। यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है।