




बल का सदुपयोग।बलशाली होकर संयमित होना।सेवक बनकर ईश्वर का पद पाना। ब्रम्हचर्य। हनुमान जी परम् बलशाली है और उन्होंने अपने बल का उपयोग धर्म के लिए किया, प्रभु की सेवा के लिए किया। उन्होंने कभी भी परम् पद पाने की लालसा नहीं की । वह प्रभु के सेवक बने रहे और सेवक रहते प्रभु के आशीर्वाद से ईश्वर का पद प्राप्त किये।उन्होंने बल का संयमित उपयोग किया, वो चाहते तो माता सीता को लंका से वापस स्वयं अपने बल से वापिस ले आते ,लेकिन उन्होंने अपने बल का अभिमान न करके, प्रभु के निर्देशानुसार संयमित और विधिनुसार बल उपयोग किया।उन्होंने सेवक बनकर अपना जीवन प्रभु चरणों में अर्पित किया और ईश्वर पद प्राप्त किया।उन्होंने यह बताया की ब्रम्हचर्य में रहते हुए कैसे उच्च जीवन जिया जा सकता है। उन्होंने हमें बताया की जब आप धर्म के साथ खड़े है और अन्याय और अधर्म के विरुद्ध है तो आप कैसे उच्च पद प्राप्त करते है।