




जिन्ह हरि भगति हृदयँ नहिं आनी। जीवत सव समान तेहि प्रानी ।। जो नहिं करइ राम गुन गाना । जीह सो दादुर जीह समाना ।। (१/११२/३) आइए, आज विवाह पंचमी के शुभ दिन पर *“भगवान् श्रीसीतारामजी की युगल उपासना”* करें। विवाह योग्य युवक युवतियों को आज के दिन श्री सीताराम जी युगल स्वरूप की अवश्य पूजा करनी चाहिए मिथिला की सखियाँ चारों राजकुमारों का दर्शन कर विधाता से प्रार्थना करती हैं कि इन चारों सुन्दर राजकुमारों का विवाह हमारी चारों राजकुमारियों से हो
पुर नारि सकल पसारि अंचल बिधिहि बचन सुनावहीं। ब्याहिअहुँ चारिउ भाइ एहिं पुर हम सुमंगल गावहीं।। (१/३१०/२छंद)
इस में युगल-उपासना की पुष्टि भी होती है।
जब वर-वधू की हथेलियों को मिलाकर अर्थात् दक्षिण हथेली पर वधू की दक्षिण हथेली को रखवाकर दोनों कुलगुरु मंत्रोच्चार करने लगे तब विवाह-विधि सम्पन्न हुई। इस प्रकार पाणिग्रहण हुआ। श्रीजनकराज ने विधिपूर्वक कन्यादान किया। पुनः विधिपूर्वक होम करके गठबन्धन किया और भाँवर होने लगी। मुनियों ने आनन्द पूर्वक भाँवरें फेरवायीं। श्रीरामचन्द्रजी ने श्रीसीताजी की मांग में सिन्दूर दिया, वह शोभा अकथनीय है। मानो कमल में भली प्रकार लाल पराग भरकर सर्प अमृत के लोभ से चन्द्रमा को भूषित कर रहा है। पुनः वसिष्ठजी की आज्ञा से दूल्हा-दुलहिन एक आसन पर विराजमान हो गये, इसी प्रकार श्रीमाण्डवीजी का श्रीभरत लाल के साथ, श्रीउर्मिलाजी का श्रीलक्ष्मण कुमार के साथ तथा श्रीश्रुतिकीर्तिजी का श्री शत्रुघ्न कुमार के साथ विधिपूर्वक विवाह सम्पन्न हुआ। सब सुन्दरी दुलहिनें सुन्दर दुल्हों के साथ एक ही मण्डप में ऐसी शोभा पा रही हैं, मानो जीव के हृदय में चारों अवस्थाएँ अपने स्वामियों के साथ विराजमान हो —
सुंदरीं सुंदर बरन्ह सह सब एक मंडप राजहीं। जनु जीव उर चारिउ अवस्था बिभुन सहित बिराजहीं।।
(१/३२४/८ छंद)
जब चारों दुलहिनों के साथ चारों दुल्हे श्री अवध पधारे तो माता कौसल्या को ब्रह्मानन्द से भी कोटि-कोटि गुणित अधिक आनन्द प्राप्त हुआ, एहि सुख ते सत कोटि गुन पावहिं मातु अनंदु। भाइन्ह सहित बिआहि घर आए रघुकुलचंदु।। (१/३५० क)
बालकाण्ड की समाप्ति पर फलश्रुति का वर्णन करते हुए गोस्वामीजी कहते हैं कि जो श्रीसीताराम-विवाह का प्रेमपूर्वक गान और श्रवण करते हैं, उन्हें सदा प्रसन्नता एवं नित्य नवीन उत्सव की प्राप्ति होगी; क्योंकि श्रीसीतारामजी का यश सदा मंगल का धाम ही है — युगल-उपासना में ही बालकाण्ड का तात्पर्य निहित है।”आज के दिन श्रीसीतारामजी के युगलस्वरूप की अपने घर में पूजा अवश्य करें”