प्रभु तो मात्रा भाव के भूखे हैं:- पं0 भरत उपाध्याय

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सासु माँ हर रोज ठाकुर जी की पूरे नियम और श्रद्धा के साथ सेवा करती थी। एक बार शरद ॠतु मेँ सासु माँ को रिश्तेदारी की शादी में शहर से बाहर जाना पड़ा। सासु माँ ने विचार किया कि ठाकुर जी को साथ ले जाने से रास्ते मेँ उनकी सेवा-पूजा नियम से नहीँ हो सकेगी। सासु माँ ने विचार किया कि ठाकुर जी की सेवा का कार्य अब बहू को देना पड़ेगा- लेकिन बहू को तो सेवा का कोई ज्ञान है नही ! कैसे ठाकुर जी को लाड़ करना है ? सासु माँ ने बहु को समझाया कि बहु ! मैँ शादी में जा रही हूँ और अब ठाकुर जी की सेवा पूजा का सारा कार्य तुमको करना है।*सासु माँ ने बहु को समझाया कि देख ! ऐसे तीन बार घंटी बजाकर सुबह ठाकुर जी को जगाना। फिर ठाकुर जी को मंगल भोग कराना। फिर ठाकुर जी को स्नान करवाना। ठाकुर जी को कपड़े पहनाना। फिर ठाकुर जी का श्रृंगार करना , फिर ठाकुर जी को दर्पण दिखाना। दर्पण मेँ ठाकुर जी का हंसता हुआ मुख देखना , बाद मे ठाकुर जी को राजभोग लगाना। इस तरह सासु माँ बहु को सारे सेवा नियम समझाकर रिश्तेदारी में चली गई। अब बहू ने ठाकुर जी की सेवा कार्य उसी प्रकार शुरु किया जैसा सासु माँ ने समझाया था।ठाकुर जी को जगाया , नहलाया , कपड़े पहनाये , श्रृंगार किया , और दर्पण दिखाया। सासु माँ ने कहा था कि दर्पण मेँ ठाकुर जी का हंसता हुआ मुख देखकर ही राजभोग लगाना। दर्पण मेँ ठाकुर जी का हंसता हुआ मुख न देखकर बहु को बड़ा आश्चर्य हुआ। बहू ने विचार किया शायद मुझसे सेवा मेँ कहीं कोई गलती हो गई हैँ तभी दर्पण मे ठाकुर जी का हंसता हुआ मुख नहीँ दिख रहा। बहू ने फिर से ठाकुर जी को स्नान कराया , श्रृंगार किया , दर्पण दिखाया , लेकिन ठाकुर जी का हंसता हुआ मुख नहीँ दिखा। बहू ने फिर विचार किया कि शायद फिर से कुछ गलती हो गई। बहु ने फिर से ठाकुर जी को स्नान कराया , श्रृंगार किया , दर्पण दिखाया। जब ठाकुर जी का हंसता हुआ मुख नही दिखा तो बहू ने फिर से ठाकुर जी को नहलाया। ऐसे करते करते बहू ने ठाकुर जी को बारह बार स्नान करवाया। हर बार दर्पण दिखाया , मगर ठाकुर जी का हंसता हुआ मुख नहीँ दिखा। अब बहू ने तेरहवीं बार फिर से ठाकुर जी को नहलाने की तैयारी की। अब ठाकुर जी ने विचार किया कि जो इसको हँसता हुआ मुख नही दिखा तो ये तो आज पूरा दिन नहलाती रहेगी। अब बहू ने ठाकुर जी को नहलाया , कपड़े पहनाये , श्रृंगार किया और दर्पण दिखाया। अब बहू ने जैसे ही ठाकुर जी को दर्पण दिखाया तो ठाकुर जी अपनी मनमोहनी मंद मंद मुस्कान से हंसे ! बहू को संतोष हुआ कि अब ठाकुर जी ने मेरी सेवा स्वीकार कर ली। अब यह रोज का नियम बन गया , और ठाकुर जी रोज हंसते। सेवा करते करते अब तो ऐसा हो गया कि बहू जब भी ठाकुर जी के कमरे में जाती , बहू को देखकर ठाकुर जी हँसने लगते ! कुछ समय बाद सासु माँ वापस आ गई। सासु माँ ने ठाकुर जी से कहा कि प्रभु क्षमा करना अगर बहू से आपकी सेवा मेँ कोई कमी रह गई हो तो अब मैँ आ गई हूँ आपकी सेवा पूजा बड़े ध्यान से करुंगी।तभी सासु माँ ने देखा कि ठाकुर जी हंसे और बोले की मैय्या आपकी सेवा भाव मेँ कोई कमी नहीँ हैँ ! आप बहुत सुंदर सेवा करती हैँ , लेकिन मैय्या दर्पण दिखाने की सेवा तो आपकी बहू से ही करवानी है…! इस बहाने मैं हँस तो लेता हूँ।*ठाकुरजी निश्छल सेवा भाव से प्रफुल्लित होते है। सच्चे हृदय और निष्काम भाव से की गई सेवा पूजा से ठाकुर जी भी रीझ जाते हैं। प्रभु तो मात्र भाव के भूखे हैं ! !!

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