किसान के कुचक्र से सभी पिटे :- पं० भरत उपाध्याय

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किसी गाँव में चार मित्र रहते थे। चारों में इतनी घनी मित्रता थी कि हर समय साथ रहते उठते बैठते, योजनाएँ बनाते।
एक ब्राह्मण एक क्षत्रिय एक वैश्य और एक शूद्र था
पर कभी भी चारों में जाति का भाव नहीं था, गज़ब की एकता थी। इसी एकता के चलते वे गाँव के किसानों के खेत से गन्ने, चने आदि चीजे उखाड़ कर खाते थे। एक दिन इन चारों ने किसी किसान के खेत से चने के झाड़ उखाड़े.और खेत में ही बैठकर हरी हरी फलियों का स्वाद लेने लगे। खेत का मालिक किसान आया..चारों की दावत देखी उसे बहुत क्रोध आया। उसका मन किया कि लट्ठ उठाकर चारों को पीटे! पर चार के आगे एक ?
वो स्वयं पिट जाता सो उसने एक युक्ति सोची। चारों के पास गया,ब्राह्मण के पाँव छुए! क्षत्रिय साहब की जयकार की*वैश्य महाजन से राम जुहार*और फिर शूद्र से बोला–देख भाई….
ब्राह्मण देवता धरती के देव हैं, क्षत्रिय तो सबके रक्षक हैं अन्नदाता हैं, वैश्य सबको उधारी दिया करते हैं… ये तीनों तो श्रेष्ठ हैं तो भाई इन तीनों ने चने उखाड़े सो उखाड़े पर तू ?
तू तो ठहरा शूद्र, तूने चने क्यों उखाड़े ? इतना कहकर उसने शूद्र के दो तीन लट्ठ रसीद किये। बाकी तीनों ने कोई विरोध नहीं किया. क्योंकि उनकी तो प्रशंसा हो चुकी थी। अब किसान, वैश्य के पास आया और बोला- तू साहूकार होगा तो अपने घर का ब्राह्मण और क्षत्रिय तो नहीं है ना! तूने चने क्यों उखाड़े?
बनिये के भी दो तीन तगड़े तगड़े लट्ठ जमाए। पण्डित और क्षत्रिय ने कुछ नहीं कहा। अब किसान ने क्षत्रिय से कहा–क्षत्रिय साहब…. माना आप हमारे रक्षक हो अन्नदाता हो.. पर किसी का अन्न छीनना तो ग़लत बात है.. अरे पण्डित जी महाराज की बात दीगर है उनके हिस्से जो भी चला जाये दान पुन्य हो जाता है. पर आपने तो बटमारी की! क्षत्रिय साहब को भी लट्ठ का प्रसाद दिया, पण्डित जी कुछ बोले नहीं! क्षत्रीय, शूद्र और वैश्य अभी तक अपनी चोट सहला रहे थे, जब ये तीनों पिट चुके….
तब किसान पण्डितजी के पास गया और बोला–माना आप भूदेव हैं! पर इन तीनों के गुरु घण्टाल आप ही हैं, आपको छोड़ दूँ! ये तो अन्याय होगा, तो दो लट्ठ आपके भी पड़ने चाहिए। मार खा चुके बाकी तीनों बोले.. हाँ हाँ, पण्डित जी को भी दण्ड मिलना चाहिए। अब क्या? पण्डित जी भी पीटे गए। किसान ने इस तरह चारों को अलग अलग करके पीटा..किसी ने किसी के पक्ष में कुछ नहीं कहा, उसके बाद से चारों कभी भी एक साथ नहीं देखे गये। मित्रों पिछली चार पांच सदियों से पहले मुगलों ने फिर अंग्रेजों ने और कुछ राजनीतिक दलों द्वारा आज भी हिंदुओं के साथ यही किया जा रहा है, कहानी सच्ची लगी हो तोआज के संदर्भ में,समझने का प्रयास करें!!

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