



पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा कराए जा रहे प्रशिक्षण का हुआ सफल समापन
जिला ब्यूरो, विवेक कुमार सिंह
बेतिया/वाल्मीकिनगर:- राज्य स्तरीय प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण के दूसरे दिन रोहतास, कैमूर और मुंगेर से आए वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को गुरुवार की सुबह जंगल के अंदर ले जाकर बाघों की गणना से संबंधित सभी तकनीकी और व्यावहारिक प्रक्रियाओं का प्रशिक्षण दिया गया। यह पहल राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले बाघ आकलन की तैयारी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे वन्यजीव संरक्षण की प्राथमिक गतिविधि माना जाता है। जिसमें बाघ आकलन की प्रक्रिया, उपयोग होने वाले उपकरण, डेटा कलेक्शन के तरीके और सुरक्षा मानकों पर जानकारी दी जाती है । इसके बाद प्रतिभागियों को फील्ड में ले जाकर ट्रांजेक्ट लाइन पर साक्ष्य एकत्र करने और दस्तावेजीकृत करने का व्यावहारिक प्रदर्शन (डेमो) कराया गया। इस डेमो का उद्देश्य अधिकारियों और मैदानी कर्मचारियों को वास्तविक परिस्थिति में गणना की तकनीक से अवगत कराना था। फील्ड बायोलॉजिस्ट सौरभ वर्मा ने प्रशिक्षण को वन विभाग की महत्वपूर्ण प्रक्रिया बताते हुए कहा कि सही गणना से बाघों की वास्तविक स्थिति, आवास, मूवमेंट और संरक्षण रणनीतियों को समझने में सहायता मिलती है। इन प्रशिक्षकों ने आकलन के दौरान उपयोग होने वाले वैज्ञानिक तरीकों—जैसे पगमार्क पहचान, मूवमेंट ट्रैकिंग, कैमरा ट्रैप लोकेशन और मोबाइल ऐप आधारित डेटा एंट्री—पर विशेष रूप से जोर दिया। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मैदानी स्तर पर काम करने वाला प्रत्येक कर्मचारी बाघ आकलन प्रक्रिया में दक्ष हो सके।
अखिल भारतीय बाघ आकलन हर चार वर्ष में आयोजित किया जाता है और यह देश में बाघों की आबादी के मूल्यांकन का सबसे विश्वसनीय वैज्ञानिक आधार माना जाता है। वर्ष 2026 के आकलन को लेकर मैदान में तैयारी पहले चरण से शुरू की जा चुकी है। प्रत्येक बीट में ट्रांजेक्ट लाइन पर शाकाहारी वन्य प्राणियों की गिनती और उनके साक्ष्य—जैसे पगचिह्न, मल-मूत्र, चराई के निशान—एकत्र किए जाएंगे। बाघ सहित अन्य मांसाहारी प्राणियों के मूवमेंट, पगमार्क, स्क्रैचिंग साइन और अन्य दस्तावेजी साक्ष्यों को रिकॉर्ड किया जाएगा।पूरी प्रक्रिया एस स्ट्राइप्स मोबाइल ऐप के माध्यम से डिजिटल रूप में दर्ज की जाएगी, ताकि राष्ट्रीय स्तर पर डेटा विश्लेषण में एकरूपता बनी रहे। इस आकलन के परिणाम न केवल संरक्षण नीतियों को प्रभावित करेंगे, बल्कि वन्यजीव प्रबंधन और मानव-वन्यजीव संघर्ष को लेकर आगे की रणनीति निर्धारित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

मांसाहारी वन्य प्राणियों की गणना
मांसाहारी वन्य प्राणियों की गणना में उनकी उपस्थिति देखी जाती है। वन्यप्राणी के छोड़े निशान के आधार पर गणना होती है। गणना में तीन दिन पगडंडियों, नदी नाले के किनारे जहां मांसाहारी टाइगर व अन्य भ्रमण करते है। वन्य प्राणियों के निशान जैसे पंजे के निशान, पेड़ पर खरोंच ,दलदल के लौटने के निशान,मारे गए शिकार आदि से उपस्थिति की डाटा अपलोड किया जाता है।
सांकेतिक पहचान
राज्य स्तरीय प्रशिक्षण में पहुंचे प्रशिक्षकों को बाघों के पंजों के निशान, पेड़ों पर खरोंच और मल जैसे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष संकेतों को पहचानने और रिकॉर्ड करने का तरीका तीन दिवसीय प्रशिक्षण में सिखाया गया। डेटा संग्रह जीपीएस आधारित मैपिंग और डेटा एप्लीकेशन के माध्यम से आंकड़े जुटाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, ताकि डेटा की गुणवत्ता बनी रहे।

व्यापक सर्वे
बाघों के साथ-साथ अन्य वन्यजीवों (शाकाहारी और मांसाहारी) की स्थिति और संख्या की जानकारी इकट्ठा करने पर भी जोर है। वन विभाग कराए जा रहे प्रशिक्षण में डब्ल्यू डब्ल्यू एफ के विशेषज्ञों एवं अन्य वन्यजीव संस्थान के विशेषज्ञों द्वारा दिया जा रहा है। बाघ गणना 2026 के लिए वनकर्मियों को जंगल में आधुनिक तकनीकों जैसे कैमरा ट्रैपिंग, पगमार्क पहचान, ट्रांजेक्ट सर्वे और जीपीएस मैपिंग का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, ताकि वे बाघों और अन्य वन्यजीवों की सटीक गिनती कर सकें, जिसमें प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष संकेतों को समझना और पहचान करना सिखाया जा रहा है।
इसके अलावा पगमार्क (पंजों के निशान) और मल-मूत्र के नमूनों का भी अध्ययन किया गया।
व्यापक गणना
यह प्रशिक्षण सिर्फ बाघों की ही नहीं, बल्कि तेंदुआ , भालू और अन्य शाकाहारी व मांसाहारी जानवरों की स्थिति जानने के लिए भी कराया जा रहा है। आधुनिक उपकरण
रेंज फाइंडर और कंपास जैसे उपकरणों का उपयोग भी सिखाया गया। राष्ट्रव्यापी अभियान यह गणना देशव्यापी स्तर पर एक समान पद्धति से की जा रही है। जिसका उद्देश्य वनकर्मियों को बाघों की गणना के लिए आधुनिक और वैज्ञानिक तरीकों से लैस करना है, ताकि देश में बाघों की सही संख्या और उनकी स्थिति का सटीक अनुमान लगाया जा सके।










