भक्त की रोटी और श्मशान के अंगारे -: पं० भरत उपाध्याय

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महादेव का रहस्य-एक बार जगत-जननी माँ पार्वती की नज़र एक ऐसे दृश्य पर पड़ी जिसने उनका हृदय विदीर्ण कर दिया। श्मशान में, चिता की धधकती अंगारों पर एक भक्त (भर्तृहरि) अपने लिए रोटियाँ सेंक रहा था।व्याकुल होकर माँ पार्वती दौड़ी-दौड़ी महादेव के पास पहुँचीं और उलाहना देते हुए बोलीं, “प्रभु! आपका हृदय इतना कठोर कैसे हो सकता है? आपका अनन्य भक्त भूख मिटाने के लिए श्मशान की आग और पिण्ड के आटे का सहारा ले रहा है, और आप मौन हैं?”
औघड़दानी शिव मुस्कुराए, “शुभे! मेरे सच्चे भक्तों को भौतिक सुखों की चाह नहीं होती। वे अभाव में भी परम संतुष्ट रहते हैं। विश्वास न हो, तो स्वयं परीक्षा ले लो।”
परीक्षा की घड़ी ,महादेव के आदेश पर, माँ पार्वती एक बूढ़ी भिखारिन का वेष धरकर उस भक्त के पास पहुँचीं और दीन भाव से बोलीं, “बेटा, कई दिन से भूखी हूँ, क्या मुझे कुछ खाने को दोगे?”
भक्त ने बिना एक पल गँवाए, अपनी सेंकी हुई चार रोटियों में से दो उस वृद्धा के हाथों पर रख दीं और बची हुई दो खाने बैठा ही था कि..वृद्धा फिर बोली, “बेटा, इन दो से क्या होगा? मेरा बूढ़ा पति भी भूखा है।”भक्त ने तनिक भी संकोच नहीं किया। उसने अपनी बची हुई दोनों रोटियाँ भी उन्हें दे दीं और संतोष के साथ कमण्डल से पानी पीकर वहाँ से जाने लगा।
दिव्य दर्शन और अद्भुत वरदान ,
तभी माँ पार्वती ने उसे रोका और अपने वास्तविक दिव्य स्वरूप में प्रकट हुईं। उन्होंने कहा, “वत्स! मैं तुम्हारी दानशीलता से अति प्रसन्न हूँ। जो चाहो वर माँगो।”
भक्त भर्तृहरि ने जो माँगा, उसने देवताओं को भी चकित कर दिया। उन्होंने कहा:”हे माते! यदि आप प्रसन्न हैं, तो बस यह वर दें कि जो कुछ मुझे मिले, वह दीन-दुखियों के काम आता रहे और मैं घोर अभाव में भी विचलित हुए बिना शांत रह सकूँ।”
‘एवमस्तु’ कहकर माँ पार्वती लौट आईं।त्रिकालदर्शी शम्भु ने मुस्कुराते हुए कहा- “देखा देवी! मेरे भक्त इसलिए दरिद्र नहीं रहते कि उन्हें कुछ मिलता नहीं, बल्कि भक्ति के साथ जुड़ी ‘उदारता’ उनसे सब कुछ दान करवा देती है। वे खाली हाथ रहकर भी संसार के सबसे बड़े धनवानों से अधिक संतुष्ट रहते हैं।

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