




प्रभु से जुड़ने के अनेक माध्यम हमारे सद्ग्रंथो, ऋषि मुनियों एवं संतो द्वारा बताये गये है, उनमे से एक है हरि नाम जप और नाम लेखन ‘ राम ‘,’ कृष्ण ‘,’ शिव‘,’ राधे ‘ जो नाम आपको प्रिय लगे उसी को पकड़ लो तो बेडा पार हो जायेगा | नाम में भेद करना नाम – अपराध है,यही प्रयास करे की हमारे द्वारा कभी नाम अपराध न बने कलयुग में केवल नाम ही आधार है .तुलसीदासजी ने भी रामचरित मानस में कहा है..
कलियुग केवल नाम आधारा | सुमीर सुमीर नर उतरही पारा ||
सतयुग में तप,ध्यान , त्रेता में यज्ञ, योग, और द्वापर में जो फल पूजा पाठ और कर्मकांड से मिलता था वही फल कलियुग में मात्र हरि नाम जप या नाम लेखन से मिलता है | नाम लेखन में मन बहुत जल्दी एकाग्र होता है | नाम जप से नाम लेखन को तीन गुना अधिक श्रेष्ठ माना गया है | क्योंकि नामलेखन से नाम का दर्शन, हाथ से सेवा नेत्रों से दर्शन और मानसिक उच्चारण, ये तीन काम एक साथ होते हैं | आनंद रामायण में लिखा है सम्पूर्ण प्रकार के मनोरथ की पूर्ति नाम लेखन से हो जाती है | इस पावन साधन से लौकिक कामनायें भी पूर्ण हो जातीहै और यदि कोई कामना न हो तो भगवन के चरण कमलो में प्रेम की प्राप्ती हो जाती है | अनादि काल से स्वयं महादेव जिस नाम का एक निष्ठ हो निरंतर स्मरण करते हुए जिनकी महिमा का बखान भगवती पार्वती से करते रहें हैं। जिनके सेवार्थ उन्होंने श्री हनुमत रूप में अवतार लिया ऐसे श्री राम का नाम लिखना सुनना कहना भव सागर से तारणहार तो है ही –नाम लिखने से एकाग्रता आती और मानसिक परेशानियां दूर होती हैं। नाम जप न बने तो नाम लेखन करो ,महावीर हनुमानजी ने स्वयं राम नाम की महिमा को प्रभु श्री राम से भी बड़ा माना है। वे कहते हैं –“प्रभो! आपसे तो आपका नाम बहुत ही श्रेष्ठ है,ऐसा मैं निश्चयपूर्वक कहता हूँ। आपने तो त्रेतायुग को तारा है परंतु आपका नाम तो सदा-सर्वदा तीनों भुवनों को तारता ही रहता है।”