परमात्मा मेरी आत्मा है :- पं०भरत उपाध्याय

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उत्तम व्रतका पालन करनेवाले नारद ! मेरा कथन सत्य है, सत्य है, सत्य है। भगवान के नामोंका उच्चारण करनेमात्रसे मनुष्य बड़े-बड़े पापोंसे मुक्त हो जाता है। ‘राम-राम-राम-राम’ इस प्रकार बारम्बार जप करनेवाला मनुष्य यदि चाण्डाल हो तो भी वह पवित्रात्मा हो जाता है। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। उसने नाम-कीर्तनमात्रसे कुरुक्षेत्र, काशी, गया और द्वारका आदि सम्पूर्ण तीर्थोंका सेवन कर लिया। जो ‘कृष्ण ! कृष्ण ! कृष्ण!’
इस प्रकार जप और कीर्तन करता है, वह इस संसारका परित्याग करनेपर भगवान् विष्णुके समीप आनन्द भोगता है। ब्रह्मन् ! जो कलियुगमें प्रसन्नतापूर्वक ‘नृसिंह’ नामका जप और कीर्तन करता है, वह भगवद्भक्त मनुष्य महान् पापसे छुटकारा पा जाता है। सत्ययुगमें ध्यान, त्रेतामें यज्ञ तथा द्वापरमें पूजन करके मनुष्य जो कुछ पाता है, वही कलियुगमें केवल भगवान् केशवका कीर्तन करनेसे पा लेता है। जो लोग इस बातको जानकर जगदात्मा केशवके भजनमें लीन होते हैं, वे सब पापोंसे मुक्त हो श्रीविष्णुके परमपदको प्राप्त कर लेते हैं। मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्ध तथा कल्कि ये दस अवतार इस पृथ्वीपर बताये गये हैं। इनके नामोच्चारणमात्रसे सदा ब्रह्महत्यारा भी शुद्ध होता है। जो मनुष्य प्रातःकाल जिस किसी तरह भी श्रीविष्णुनामका कीर्तन, जप तथा ध्यान करता है, वह निस्सन्देह मुक्त होता है, निश्चय ही नरसे नारायण बन जाता है।

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