सबका भला करते रहो :- पं0 भरत उपाध्याय

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परमात्मा कहते, तुम मास्टर मुक्तिदाता, विश्व की आत्माओं को समस्याओं से मुक्ति दिलाने का कार्य करो, तो तुम्हारी छोटी मोटी समस्याओं से स्वत: मुक्ति मिल जाएगी।  इस छोटी सी कहानी के माध्यम से समझते हैं। एक घर में एक मां बेटा रहते थे जो बहुत गरीब थे। एक दिन माँ ने बेटे से कहा, बेटा! यहाँ से दूर एक तपोवन में बड़े सिद्ध, महाज्ञानी दिगम्बर मुनि पधारे हैं। तुम उनसे जाकर पूछो, हमारे दु:खों का अंत कैसे होगा?
मां की आज्ञा से बेटा चल पड़ा। यातायात की सुविधा न होने के कारण वह पद यात्रा पर था। चलते-चलते सांझ हो गई। गाँव में किसी के घर वह विश्राम करने रुक गया। सम्पन्न परिवार था। सुबह उठकर वह आगे की यात्रा पर चलने लगा तो घर की सेठानी ने पूछा, बेटा कहाँ जाते हो? उसकी यात्रा का कारण जानकर सेठानी ने कहा, बेटा एक बात मुनिराज से मेरी भी पूछ आना, मेरी इकलौती गूंगी बेटी क्या कभी बोल पाएगी? इसका विवाह किससे होगा? ठीक है, कहकर वह आगे बढ़ गया। चलते चलते, विश्राम के लिए उसने अगला पड़ाव एक संत की कुटिया में डाला। विश्राम के पश्चात्‌ जब वह चलने लगा तो उस संत भी पूछा, कहाँ जा रहे हो? यात्रा का कारण जानकार संत बोले, बेटा! मेरी भी एक समस्या है, मुझे साधना करते हुए 50 साल होने पर भी संतत्व का स्वाद नहीं आया। मेरा कल्याण कब होगा, इतना पूछ लेना। ठीक है, संत को प्रणाम कर आगे बढ़ा। युवक का अगला पड़ाव एक किसान के खेत पर था। रात में चर्चा के दौरान किसान ने उससे कहा मेरे खेत के बीच में एक विशाल वृक्ष है। मैं बहुत परिश्रम करता हूँ, लेकिन उस वृक्ष के आस-पास दूसरे वृक्ष पनपते नहीं। इसका कारण जानकर समाधान भी पूछ लेना। युवक ने स्वीकृति में सिर हिलाया और आगे की ओर बढ़ गया। अगले दिन वह मुनिराज के चरणों में पहुँच गया। मुनिराज के दर्शन किये। दर्शन कर उसने अपने जीवन को धन्य माना। मुनिराज से प्रार्थना की, प्रभु! मेरी कुछ समस्याएं हैं, जिनका समाधान चाहता हूँ। आपकी आज्ञा हो तो निवेदन करूं। मुनि बोले ठीक है। एक बात का ख्याल रखना कि तीन प्रश्न से ज्यादा मत पूछना। इससे ज्यादा के बारे में मैं कुछ ना बताऊंगा। युवक बड़े धर्म-संकट में फंस गया। प्रश्न तो चार हैं, तीन कैसे पूछूं। तीन प्रश्न दूसरों के हैं और एक प्रश्न मेरा खुद का है। किसका प्रश्न छोड़ू। लड़की का प्रश्न छोड़ दूं ? नहीं, यह उसकी जिन्दगी का सवाल है। महात्मा का प्रश्न छोड़ दूं ? यह भी ठीक नहीं होगा। तो किसान का प्रश्न छोड़ दूं? नहीं, वह बेचारा खून-पसीना एक करता है, उसका काम तो करना ही है। काफी उहापोह के बाद उसने तय किया वह उन तीनों का प्रश्न पूछेगा, खुद का छोड़ देगा। उसने अपना प्रश्न छोड़ दिया और शेष तीनों प्रश्नों का समाधान लिया और वापस घर की ओर चल दिया। रास्ते में सबसे पहले किसान से मुलाकात हुई। किसान से युवक ने कहा, मुनिराज ने कहा है, तुम्हारे खेत में जो विशाल वृक्ष है, उसके नीचे चारों तरफ सोने के कलश दबे हुए हैं। इसी कारण से तुम्हारी मेहनत सफल नहीं होती है। किसान ने वहाँ खोदा तो सचमुच सोने के कलश निकले। किसान ने कहा, बेटा यह धन-सम्पदा तेरे कारण मिली है। आधे का मालिक तू है। युवक धन लेकर आगे बढ़ा। अब संत के आश्रम पहुंचा। युवक ने कहा, स्वामी जी! माफ करना मुनिराज ने कहा है कि आपने अपनी जटाओं में कोई कीमती मणि छुपा रखी है। जब तक आप उस मणि का मोह नहीं छोड़ेंगे, तब तक आपका कल्याण नहीं होगा।* साधु ने कहा, तू ठीक ही कहता है, सच में मैंने एक मणि अपनी जटाओं में छिपा रखी है। हर वक्त इसके खोने का या चोरी होने के भय के कारण मेरा ध्यान भजन-सुमिरण में पूरी तरह नहीं लगता। ले अब इसे तू ही ले जा, और साधु ने वह मणि उस युवक को दे दी। युवक दोनों चीजों को लेकर आगे बढ़ते हुए सेठानी के घर पहुँचा। सेठानी दौड़ी-दौड़ी आई, पूछा, बेटा ! क्‍या कहा मुनिराज ने। युवक ने कहा, माँ जी मुनिजी ने कहा कि तुम्हारी बेटी जिसको देखकर बोल पड़ेगी, वही इसका पति होगा। तभी वह लड़की बाहर आई और उस युवक को देखते ही एकदम से बोल पड़ी। सेठानी ने कहा,बेटा आज से तू इसका पति हुआ। मुनिराज की वाणी सच हुई, उसने अपनी बेटी का विवाह उस युवक से करा दिया। अब वह युवक धन, मणि और कन्या को साथ लेकर घर पहुँचा। माँ ने पूछा, बेटा क्या कहा मुनिश्री ने। कब हमें इन दु:खों से मुक्ति मिलेगी। बेटे ने कहा, माँ! मुक्ति मिलेगी नहीं, मिल गई है। मुनिराज के दर्शन मात्र से ही जीवन के दु:ख, पीड़ाएं और दर्द खो गये। माँ ने पूछा, तो मुनिराज ने हमारी समस्याओं का समाधान कर दिया है? बेटे ने कहा, हाँ माँ ! मैंने तो अपनी समस्‍या उन्हें बताई ही नहीं और समाधान भी हो गया। माँ ने पूछा वो कैसे ? बेटे ने कहा, *माँ मैंने सबकी समस्या को अपनी समस्या समझा तो मेरी समस्या का समाधान स्वत: हो गया। सार है, जो दूसरों के भले के लिए सोचते है, उनके भले के लिए स्वयं ईश्वर सोचते हैं।

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