चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीड़ -: पं-भरत उपाध्याय

0
675


Spread the love

बिहार। उन दिनों तो तुलसीदास जी को प्रभु श्रीराम से मिलने की बहुत ललक लगी हुई थी। वो प्रात: बहुत जल्दी उठ जाते थे और शौच आदि से निवृत्त होकर जो बचा हुआ जल था वो एक बबूल के पेड़ में डाल दिया करते थे। उस बबूल के पेड़ पर एक प्रेत रहता था वो उस जल का पान करता था। एक दिन सुबह सुबह जब तुलसीदास जी ने बचा हुआ ज़ल बबूल के पेड़ में डाला तो वो प्रेत प्रकट हो गया और उसने कहा कि मैंने वर्षों तक तुम्हारा दिया हुआ जल पिया है तो तुम मुझ से कोई 1 वर माँग सकते हो क्यों क्यों की अब मेरे जाने का समय आ गया हैतुलसीदास जी ने मौक़ा अच्छा जानकार कहा कि मुझे श्रीराम से भेंट करवा दो। प्रेत ने कहा कि प्रभु श्रीराम से भेंट तो सिर्फ़ हनुमानजी ही करवा सकते हैं। तब तुलसीदास जी ने कहा ठीक है तो तुम मुझे हनुमान जी से ही मिलवा दो। तब प्रेत ने कहा कि आप कैसी बात करते हैं आपने ही तो हनुमान चालीसा में लिखा है कि भूत पिशाच निकट नहीं आवें महावीर जब नाम सुनावें । तब मैं कैसे हनुमानजी से आपको मिलवा सकता हूँ।हाँ हाँ मैं आपको उनका पता बता सकता हूँ। तुलसीदास जी ने कहा कि ठीक है तो मुझे उनका पता ही बता दो। तब प्रेत ने कहा कि हनुमानजी यहाँ से कुछ दूरी पर एक जगह रामायण का पाठ चल रहा है रामलीला चल रही है वहाँ पर एक बूढ़े का वेश बनाकर आते हैं और सबसे पहले जाते हैं एवं अंत तक बैठे रहते हैं । अगर तुम पहचान पाओ तो वही हनुमानजी होंगे। तुलसीदास जी ये बात सुनकर जहाँ राम लीला खेली जा रही थी वहाँ पहुँच गए। कई दिन तक देखने के बाद उन्हें लगा कि एक वृद्ध व्यक्ति सबसे पहले आता है कपड़ा ओढ़कर और सबसे अंत में जाता है उन्हें लगा यही हनुमानजी होने चाहिए। एक दिन रामलीला ख़त्म होने के बाद तुलसीदास जी ने उस वृद्ध के चरण पकड़ लीये । लाख समझाने के बाद भी तुलसीदास जी ने जब उस वृद्ध के चरण नहीं छोड़े तब उस वृद्ध ने हनुमान जी के रूप में उनको दर्शन दिए। हनुमान जी ने तुलसीदास जी को बताया कि अगर प्रभु श्रीराम के दर्शन करने हैं तो उनको चित्रकूट जाना चाहिए ,जहाँ पर वे आते हैं।उन्न्होने कहा कि दो बहुत सुंदर किशोर उनके सामने आएंगे लेकिन उनको चकित नहीं होना है और हनुमानजी के दिए हुए इशारे को सुनना है। तुलसीदास जी चित्रकूट पहुँच गये। वहाँ पर वे चंदन घिसकर सबको लगाने लगे।तभी उन्होंने देखा दो बहुत सुंदर किशोर हाथों में धनुष बाण लेकर दो बहुत सुंदर घोड़ों पर सवार होकर सामने से निकल गए। थोड़ी देर बाद वही दोनों किशोर तुलसीदास जी के सामने खड़े थे। तुलसीदास जी उन दोनों की की सुंदरता देखकर अपना आपा खो बैठे अपनी सुधबुध खो बैठे और उन्होंने हनुमान जी के गानों को ध्यान नहीं दिया। तभी वो दोनों किशोर अंतरध्यान हो गए। तो तुलसीदास जी को अत्यंत दुख हुआ उन्होंने हनुमान जी से एक बार फिर प्रार्थना करी। उनकी बात मानकर हनुमान जी ने एक बार फिर प्रयत्न करने का वादा किया। अगले रोज़ फिर तुलसीदास जी चित्रकूट के घाट पर चंदन घिसने लगे ,लोग आते जाते थे और वो उनको चंदन लगाते जाते थे। तभी तुलसीदास जी को वो दोनों किशोर एक बार फिर नज़र आए वही कोमल स्वरूप वही सुंदर मुखड़ा। वो एक बार फिर अपनी सुधबुध खो बैठे। तभी उनके कानों में हनुमानजी की आवाज़ पड़ी हनुमानजी गा रहे थे। चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर। तुलसीदास चन्दन घिसें तिलक देत रघुवीर।।
तब तुलसीदास जी को होश आया और उन्होंने प्रभु श्रीराम के प्रत्यक्ष दर्शन कर एवं उनसे आशीर्वाद पाये।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here