



जिला ब्यूरो, विवेक कुमार सिंह
बेतिया/वाल्मीकिनगर:- बिहार के इकलौते टाइगर रिजर्व (वीटीआर) में बाघों की गिनती के लिए वन कर्मियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। बाघों की गिनती के लिए पहले ट्रैकिंग पद्धति का सहारा लिया जाता था। मिट्टी में बाघों के पंजों के निशान में चूना देकर उसकी पहचान पुख्ता की जाती थी। फिर बाघों गिनती की जाती थी, लेकिन अब, बाघों की गिनती आधुनिक उपकरणों के सहारे तथा मैन्युअल तरीके से की जा रही है। रिपोर्ट बनाने में कैमरा ट्रैप व एम-स्ट्राइप नाम के मोबाइल एप्लीकेशन का उपयोग किया जाएगा। मोबाइल एप एम-स्ट्राइप को संचालित करने के लिए वन अधिकारियों और कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। यह मोबाइल एप जीपीएस की तरह काम करता है। पूरे दिन जंगल में गश्त करने के बाद मोबाइल एप के डाटा को टाइगर सेल में सुरक्षित रखा जाता है। बाघों के आवाजाही वाले मार्ग के दोनों ओर कैमरे लगा दिए जाते हैं। जब बाघ उस मार्ग से गुजरते हैं तो कैमरा ट्रैप में उनकी तस्वीरें स्वत: कैद हो जाती हैं। बाद में बाघों के शरीर पर बनी धारियों की मिलान की जाती है। जैसे दो इंसानों के फिंगर प्रिंट एक नहीं हो सकते, ठीक उसी प्रकार बाघों के शरीर पर बनी धारियां भी कभी एक जैसी नहीं होती हैं।
लगभग 900 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले वीटीआर में साल 2000-2001 की गणना में बाघों की संख्या 30 के करीब थी। 2005-06 की गणना में यह संख्या घटकर 18 पहुंच गई। वहीं वर्ष 2010 की गणना में महज आठ बाघ ही इस क्षेत्र में मिले। साल 2014 की गणना के बाद चौंकाने वाले परिणाम सामने आए और बाघों की संख्या आठ से बढ़ कर 28 हो गई। वर्ष 2018 की गणना में बाघों की संख्या 35 पहुंच गईं थी। 2022 में बाघों की संख्या 54 तक पहुंच गई।

देहरादून से तय होगी वास्तविक संख्या
बाघों की वास्तविक संख्या कितनी है, इसकी औपचारिक घोषणा देहरादून से की जाएगी। साल 2026 में होने वाली राष्ट्रीय बाघ गणना को लेकर वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में तैयारियां तेज हो गई है। दरअसल, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ( एनटीसीए) द्वारा हर 4 वर्षों के अंतराल में राष्ट्रीय स्तर पर बाघों की संख्या का अनुमान लगाया जाता है, आम बोलचाल की भाषा में इसे बाघ गणना भी कहते हैं। इस बाबत सीएफ नेशमणि के ने बताया कि देशभर में ऑल इंडिया टाइगर एस्टिमेशन के तहत यह गणना हर चार साल में एक बार की जाती है, जिसका उद्देश्य देश में बाघों की वास्तविक संख्या, उनके आवास क्षेत्र, वितरण और संरक्षण की स्थिति का सटीक आकलन करना है।
इस महत्वपूर्ण राष्ट्रीय अभियान में भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यू आईं आई) की भूमिका अहम है। संस्थान द्वारा वन विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को विशेष प्रशिक्षण दिया गया है, ताकि गणना पूरी तरह वैज्ञानिक, पारदर्शी और विश्वसनीय तरीके से संपन्न हो सके। इस बार भी टाइगर सेंसस के वैज्ञानिक मानकों पर विशेष जोर दिया जा रहा है।
बाघों की गणना के लिए आधुनिक कैमरा ट्रैप तकनीक का व्यापक उपयोग किया जाएगा। फील्ड वाइजोलिस्ट सौरभ वर्मा के अनुसार यह वर्तमान समय में बाघ गणना की सबसे भरोसेमंद और मान्य विधि है। कैमरा ट्रैप के माध्यम से बाघों की तस्वीरें ली जाती हैं, जिनमें उनकी धारियों के पैटर्न के आधार पर पहचान की जाती है। प्रत्येक बाघ की धारियां इंसानों के फिंगरप्रिंट की तरह अद्वितीय होती हैं, जिससे एक-एक बाघ की सटीक पहचान संभव होती है।
वीटीआर में बढ़ीं बाघों की संख्या
इस वैज्ञानिक पद्धति से न केवल बाघों की वास्तविक संख्या का आकलन होता है, बल्कि उनके मूवमेंट पैटर्न, क्षेत्रीय विस्तार और व्यवहार से जुड़ा महत्वपूर्ण डेटा भी प्राप्त होता है। यह जानकारी डेटा भी प्राप्त होता है। यह जानकारी भविष्य में बाघ संरक्षण की नीतियां बनाने, वन प्रबंधन को मजबूत करने और मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने में सहायक सिद्ध होगी। इस अवसर पर पंकज ओझा,डब्ल्यू डब्ल्यू एफ के अहवर आलम मौजूद रहे।










