वन विभाग एवं डब्लूडब्लूएफ के सौजन्य से जैव विविधता संरक्षण को लेकर कार्यशाला आयोजित।

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कार्यशाला में शामिल हुए पांच रेंज के रेंजर, वनपाल व वनरक्षी

जिला ब्यूरो, विवेक कुमार सिंह

बेतिया/वाल्मीकिनगर। वाल्मीकि टाइगर रिजर्व वन प्रमंडल दो के वाल्मीकिनगर रेंज में स्थित वन विभाग के सभागार में शुक्रवार को वन विभाग एवं डब्लूडब्लूएफ के सौजन्य से जैव विविधता संरक्षण में मानवाधिकार विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में डीएफओ पीयूष बरनवाल के साथ वाल्मीकिनगर के रेंजर अमित आनंद,मदनपुर रेंजर नसीम अहमद,गनौली रेंजर राजकुमार पासवान, हरनाटांड़ रेंजर शिवकुमार राम, एवं चिउटाहां रेंजर अमित कुमार सहित 50 की संख्या में वनपाल व वनरक्षी शामिल हुए। प्रशिक्षक के रूप मे डब्लूडब्लूएफ के डॉक्टर प्रिया गुप्ता व अहबर आलम शामिल थे। ऑडिटोरियम हॉल में उपस्थित रेंजर वनपाल व वनरक्षियों को डॉ प्रिया गुप्ता द्वारा सर्वप्रथम मानवाधिकार के बाबत जानकारी दी गई। उन्होंने कहा कि संविधान में मौलिक अधिकार को शामिल किया गया है। जबकि मानवाधिकार सबके लिए है। जिसमें मुख्य रूप से शिक्षा, व्यापार, खान-पान के साथ अन्य अधिकार जुड़े हुए हैं। मौलिक अधिकार का उपयोग संविधान के अनुरूप किया जाता है। वन विभाग में कार्यरत सभी कर्मियों का मानवाधिकार आम आदमी की तरह है। परंतु अपने कर्तव्य पर रहने के समय उसका स्वरूप बदल जाता है। जंगल के अंदर किसी व्यक्ति को जंगल में गलत काम करने से कैसे रोका जा सकता है यह उस कमी पर निर्भर है। उसे आम व्यक्ति को डराया जाएगा या धमकाया जाएगा या कुछ और तरीकों के साथ उसे वहां से हटाया जाएगा यह मानवाधिकार में सोच के ऊपर निर्भर करता है। जंगल में लकड़ी काटने वाले, लकड़ी चुनने वाले को उसे जगह पर खतरनाक वन्य जीव होने की बात कह कर हटाना सबसे उत्तम होता है। अगर उससे डरा कर धमका कर हटाया जाएगा तो हो सकता है व हिंसक रूप धारण कर आपके साथ कुछ गलत कर दे। इसलिए अपने अधिकार का उपयोग किस प्रकार करना है, यह अपनी सोच पर निर्भर करता है। वहीं दूसरी ओर एक साथ काम करने वाले विभिन्न जाति एवं धर्म के होते हैं। उनके साथ है धार्मिक भेदभाव ना हो यह भी मानवाधिकार के अंदर आता है। किसी भी रूप में मानवाधिकार का हनन मौलिक अधिकार के हनन का काम करता है, जो उचित नहीं है।

पुरुष की अपेक्षा महिलाएं पर्यावरण संरक्षण में होती है सहायक

कार्यशाला के दौरान डॉक्टर प्रिया गुप्ता ने जैव विविधता संरक्षण में मानवाधिकार के साथ-साथ लिंग पर भी विशेष रूप से जानकारी देते हुए रेंजर, वनरक्षी व वनपालों को बताया कि महिलाएं पर्यावरण संरक्षण में सबसे ज्यादा सहयोगी के रूप में काम करती है। काम करने में भी महिलाएं पुरुषों से काम नहीं है। सबसे मुख्य काम महिलाओं का रसोई तैयार करना, बच्चों को स्कूल के लिए तैयारी करना, पुरुषों के साथ फसलों की कटाई एवं बुआई में काम करने के साथ-साथ गोबर गैस तैयार करने एवं साफ सफाई कर पर्यावरण संरक्षण में अहम भूमिका निभाती है। यह कहीं नहीं है कि महिलाएं पुरुषों से कम काम करती है।

जैव विविधता एवं वन संरक्षण में ग्रामीणों के साथ अच्छा संबंध जरुरी: एकदिवसीय कार्यशाला के दौरान वन कर्मियों एवं अधिकारियों को जंगल से सटे गांव में रहने वाले ग्रामीणों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए इस पर भी फोकस किया गया। डॉ प्रिया गुप्ता ने बताया कि जिस समय जंगल के अंदर किसी प्रकार की आपदा में वनकर्मी फंस जाता है, तो वहां रहने वाले ग्रामीणों की मदद ही उसे बचाता है। अगर आप उसे ग्रामीण के साथ गलत व्यवहार किए रहेंगे, तो वह आपका मदद करने से हिचकिचाएगा। जब ग्रामीण आपके बुरे समय पर मदद नहीं करेगा तो वह नहीं वन संपदा और ना ही वन्य जीवों के संरक्षण में काम कर पाएगा। इसलिए ग्रामीणों से आपसी समन्वय स्थापित करने में आपकी भूमिका अहम होना चाहिए।

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