




नगर संवाददाता राजदीप सिंह
बांका। सूबे में बांका विधानसभा शायद एक ऐसा विधानसभा होगा जहाँ कि 90 के दशक से लेकर अब तक केवल 2 ही विधायकों का दबदबा रहा है। एक ओर भाजपा इस विधानसभा सीट को अपना गढ़ मानती है, माने भी क्यू ना? जिस वक़्त बांका का जिला के रूप में जन्म हुआ था उस ज़माने से ही इनके दल के विधायक इस क्षेत्र की बागडोर संभाले हुए हैं। वहीं दूसरी ओर राजद भी इस विधानसभा पर ना सिर्फ अपनी निगाहें जमाये बैठती है बल्कि जब जनता का मूड बदलाव का होता है तब जनता केवल राजद में ही क्षेत्र का विकास ढूंढती है। चाहे महोदय हो या माननीय दोनों इस विधानसभा सीट के दम पर मंत्रालय में भी धूम मचा चुके हैं। कई जानकल्याणकारी योजना को भी कई बार हरी झंडी मिल चुकी है। शायद दूसरा कोई भी उम्मीदवार जनता को रिझाने में असमर्थ रहे हों। यही वजह है कि कुर्सी के इर्द गिर्द केवल महोदय व माननीय ही घुमते रहे। मगर सत्ता की खूबसूरती यही है की आपको केवल 5 वर्ष मिलते हैं जनता का ख़याल रखने हेतु तत्पश्चात जनता के आशीर्वाद से आपका भविष्य का मूल्यांकन किया जाता है। बड़े से बड़े राजनेता भी बिना जनता के मंज़ूरी के कुर्सी नहीं भोग पाते। इस विधानसभा चुनाव में वैसे तो कई कद्दावर नेता यह मान कर चल रहे हैं कि इस चुनाव को वो बड़े अंतर से जीतने जा रहे हैं, मगर इस महोदय व माननीय की लड़ाई में विश्वसनीय भी चुनावी मैदान में कूद चुके हैं। एक तरफ जहाँ माननीय व महोदय बिलकुल बगुला की भांति एकाग्रचित होकर अपने अपने दल से अपने टिकट की दावेदारी में लगे हुए हैं, वहीं विश्वसनीय अपने समर्थकों के साथ बांका विधानसभा के एक एक दरवाज़े को खटखटा कर खुद को महोदय व माननीय का विकल्प बताने में जुटे हुए हैं। हालांकि जानकारी के लिए बता दूँ कि विश्वसनीय लोकसभा चुनाव 2025 से ही जनता के बीच आशीर्वाद माँगने पहुँचते रहे हैं। इनके पीछे भी अपार जनसमर्थन देखा गया है। अब देखना यह दिलचस्प होगा कि सचमुच अनुभव जोश पर भारी पड़ेगा या विश्वसनीय महोदय व माननीय कि वर्षों कि तपस्या को इस चुनावी ताप में भंग करने में सफल होते हैं?