खाओ मन भर, छोड़ो न कण भर :- पं० भरत उपाध्याय

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रामायण के अनुसार सीता जी की खोज के समय हनुमानजी ने जब रावण की रसोई में प्रवेश किया तब रावण की जूठी थाली देख कर हनुमानजी समझ गये कि रावण की मृत्यु निकट आ गई है, क्योंकि रावण ने थाली में दही जूठा छोड़ रखा था।
भोजन में जूठा छोड़ने वाले की आयु कम होती जाती है. शायद इसी कारण से हमारे पूर्वज खाना खाकर थाली में पानी डाल कर फिर जूठन को घोल कर पी जाया करते थे। विद्वानों के अनुसार थाली में जूठा भोजन छोड़ना मां अन्नपूर्णा और मां लक्ष्मी का अपमान माना जाता है। ऐसा करने से आर्थिक स्थिति कमजोर होती है। साथ ही घर आती लक्ष्मी भी रूठ कर चली जाती है। भोजन जूठा छोड़ने वाले बच्चे पढ़ाई में कमजोर होते चले जाते हैं। मन पढ़ाई से धीरे धीरे पूरी तरह हट जाता है। इसलिए बच्चे पहली बार में जितना खा सकते हैं उतना ही परोसें। थाली में जूठा भोजन छोड़ने से शनि का प्रकोप झेलना पड़ सकता है। इसके साथ ही चंद्रमा की भी अशुभ दृष्टि व्यक्ति के जीवन पर पड़ने लग जाती है। चंद्रमा की भी अशुभ दृष्टि की वजह से मानसिक बीमारियां भी व्यक्ति को घेर लेती हैं।
इसके अलावा यदि आप यात्रा के दौरान जूठा भोजन फेंकते हैं तो आपके काम कभी नहीं बनते या बनते काम भी बिगड़ने शुरू हो जाते हैं। थाली में जूठा भोजन छोड़ने से व्यक्ति पाप का भागी बनता है। इसलिए थाली में भोजन उतना ही लेना चाहिए जितना खा सकें और कोशिश करें कि कभी भी भोजन व्यर्थ न हो। यदि किसी कारण वश भोजन थाली में छूट जाता है तो हाथ जोड़कर मां अन्नपूर्णा से माफी मांगें।

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