दूसरा देखा न तेरे जैसा, वाह रे पैसा,हाय रे पैसा! :- पं० भरत उपाध्याय

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मैं पैसा हूँ!
मुझे आप मरने के बाद ऊपर नहीं ले जा सकते;मगर जीते जी मैं आपको बहुत ऊपर ले जा सकता हूँ।मुझे पसंद करो सिर्फ इस हद तक कि लोग आपको नापसन्द न करने लगें।
मैं पैसा हूँ!
मैं भगवान् नहीं मगर लोग मुझे भगवान् से कम नहीं मानते।
मैं नमक की तरह हूँ। जो जरुरी तो है, मगर जरुरत से ज्यादा हो तो जिंदगी का स्वाद बिगाड़ देता है।
मैं पैसा हूँ!
इतिहास में कई ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे जिनके पास मैं बेशुमार था;मगर फिर भी वो मरे और उनके लिए रोने वाला कोई नहीं था।मैं कुछ भी नहीं हूँ; मगर मैं निर्धारित करता हूँ कि लोग
आपको कितनी इज्जत देते हैं।
मैं पैसा हूँ!
मैं आपके पास हूँ तो आपका हूँ!
आपके पास नहीं हूँ तो,आपका नहीं हूँ! मगर मैं आपके पास हूँ तो सब आपके हैं।मैं नई नई रिश्तेदारियाँ बनाता हूँ;मगर असली औऱ पुरानी बिगाड़ देता हूँ।
मैं पैसा हूँ!
मैं सारे फसाद की जड़ हूँ;
मगर फिर भी न जाने क्यों
सब मेरे पीछे इतना पागल हैं?
एक सच्चाई ये भी है कि………
बदलता हुआ दौर है साहब .पहले “आयु” में बड़े का सम्मान होता था…!
अब “आय” में बड़े का
सम्मान होता है!

मुझे मंदिर में दिया जाए तो चढ़ावा, स्कूल में फीस, शादी में दो तो दहेज ,तलाक देने पर गुजारा भत्ता, आप किसी को देते हो तो कर्ज, अदालत में जुर्माना, सरकार लेती है तो कर, सेवानिवृत्त होने पर पेंशन, अपहर्ताओं के लिए फिरौती, बैंक से उधार लो तो ऋण,श्रमिकों के लिए वेतन , मातहत कर्मियों के लिए मजदूरी, अवैध रूप से प्राप्त सेवा रिश्वत और मुझे दोगे तो गिफ्ट!!शायद आप सभी लोग मुझे पहचान गए होंगे।

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