जीवन की वास्तविकता :- पं0 भरत उपाध्याय

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मत परेशान हों!क्योंकि आमतौर पर.. चालीस साल की अवस्था में ” उच्च शिक्षित” और “अल्प शिक्षित ” एक जैसे ही होते हैं। ( क्योंकि अब कहीं कोई इंटरव्यू नहीं देना, कोई डिग्री नहीं दिखानी है)पचास साल की अवस्था में ” रूप” और ” कुरूप” लगभग एक जैसे ही लगते हैं। (आप कितने ही सुंदर क्यों न हों लेकिन झुरियां और. आंखों के नीचे हल्के काले धब्बे ( Dark Circle) छुपाए भी नहीं छुपते ) साठ साल की अवस्था में ” उच्च पद ” और ” निम्न पद ” भी एक जैसे ही हो जाते हैं। ( चपरासी भी अधिकारी के सेवा निवृत्त हो जाने पर उनकी तरफ देखने से कतराता है). सत्तर साल की अवस्था में बड़ा घर और छोटा घर एक जैसे ही लगते हैं (बीमारियां और खालीपन आपको एक जगह बैठे रहने को मजबूर कर देता है,और आप छोटी जगह में भी गुजारा कर सकते हैं). अस्सी साल की अवस्था में आपके पास धन का कम होना या ज्यादा होना भी एक जैसा हो जाता है।(अगर आप खर्च करना भी चाहें तो आपको नहीं पता कि कहां खर्च करना है ). नब्बे साल की अवस्था में सोना और जागना एक जैसा ही हो जाता है।( जागने के बावजूद भी आपको नहीं पता कि क्या करना है). इसलिए जीवन को सामान्य रूप में ही लें क्योंकि जीवन रहस्य नहीं है जिसे आप ताउम्र सुलझाते फिरें..आगे चल कर एक दिन सबकी यही स्थिति होनी है. .यही जीवन कि सच्चाई है..चैन से जीने के लिए चार रोटी और दो कपड़े काफी हैं.. लेकिन, बैचैनी से जीने के लिए चार गाड़ी, दो बंगले और ढेर सारा धन भी कम हैं ।

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