गुरु केवल ज्ञान ही नहीं देते बल्कि शिष्य के सूक्ष्म अहंकार को खत्म कर देते हैं -पं० भरत उपाध्याय

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गुरु के बिना नहीं होता ज्ञान का बोध!बहुत सारी पुरानी निरर्थक बातों के लिए हम अत्यन्त भावुक और पागलपन की हद तक संवेदनशील है! सारी दुनिया मॆ मूर्खतापूर्ण बातों के लिये ही अधिक झगड़े हो रहे हैं! सभी ये दावा कर रहे हैं कि सिर्फ़ मेरा धर्म सच्चा है सिर्फ़ मेरा भगवान सच्चा है ,सच कोई नहीं जानता किसी ने भी कभी किसी भगवान को नहीं देखा और न जानने का प्रयास हीं किया ! हमारे माने हुए भगवान को किसी ने अपमानित कर दिया, अपशब्द कह दिये और हम लोग मरने मारने के लिए तैयार हो गये! क्या मान अपमान से परे उस भगवान ने अपने आप को अपमानित महसूस किया ? और क्या तुम्हारे कल्पित भगवान नें तुमसे अपने अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए कहा है? क्या तुम जिसे भगवान मानते हो वह सामान्य इन्सानों की तरह द्वेष प्रतिशोध के विकारो से ग्रसित है? यदि उन्होने तुम्हे प्रतिशोध के लिये भेजा है तो क्या वे कमजोर हैं जो स्वयं न्याय नहीं कर सकते ! यह पुस्तक अत्यंत पवित्र और अन्तिम सत्य है तो क्या इस पुस्तक का अपमान करने या जलाने से कागज के पन्नों के साथ सत्य भी जल जाता है और टूट जाता है ? पुस्तकें बुद्धि को प्रेरित करने के लिये हैं या केवल पूजा करने के लिये ? सारी जिंदगी लड़ते रहे, सा़सें टूट रही थीं मगर लड़ रहे थे ,ये जमीन मेरी है इस सम्पति पर मेरा हक है लेकिन सब कोई जमीन, सम्पति यहीं छोड कर चले गये! हमेशा महत्वाकांक्षी बाहुबली अपने साम्राज्य की स्थापना और विस्तार करते रहे लेकिन सारे सम्राटॊं के नामो निशान मिट गयॆ, सारे साम्राज्य उजड़ गये! स्त्री पुत्र परिवार के मोह मे अन्धे हो गये लेकिन वास्तव मे इनमे से कोई भी तुम्हारा नहीं था, मोहिनी माया ने सभी को बेहोश कर लूट लिया ! यहाॕ किसी महापुरुष ने जन्म लिया था इसलिये यह भूमि पवित्र है, यहाँ उसने लोक कल्याण के काम किये थे इसलिये यह भूमि पवित्र है, यहाँ उन्होनें देह त्याग किया था इसीलिये यह भूमि पवित्र है । मिट्टी सभी जगह एक समान है, उस मिट्टी को पूज रहे हो सर आंखों पर लगा रहे हो इससे क्या होगा जो भी प्रेरणा अन्दर जाग्रत होगी उस महापुरुष द्वारा प्रदान किये गये ज्ञान का अध्ययन मनन करने और उनके गुणो का स्मरण करने से होगी! याद रखो; जिस भूमि पर एक महापुरुष का जन्म हुआ था उसी भूमि पर उसी काल में अनगिनत दुष्ट आत्माओं का भी जन्म हुआ था! प्रश्न यह है कि भूमि महान हुई या महापुरुष द्वारा किये गये कर्म महान हुए या मिट्टी? आत्मा अमर है या समाधि स्थल अथवा मजार के अन्दर दबी हुई हड्डियां? बात अगर आस्था कि है तो आस्था अपने आप में गलत नहीं है, लेकिन: क्या हम आस्था का सही अर्थ समझ रहे हैं? विवेकहीन अन्धी भावुकता से प्रेरित आस्था व्यक्ति के साथ साथ समाज देश और सारी दुनिया के लियॆ घातक ही सिद्ध होती है, क्योंकि ऐसा घोर धर्मान्धता और अंधविश्वास के कारण है! सच्ची आस्था ने ईश्वर को खोजा तथा अन्धी भावुकता व अज्ञान नें उसे तीर्थ स्थलों में, मूर्तियो में और पुस्तकों मे बन्द कर डाला ! मनुष्य को अपनी अंतर्निहित बुद्धि,प्राप्त ज्ञान एवं बुद्धि- ज्ञान के संयोग से उत्पन्न विवेकशक्ति के माध्यम से चैतन्य बनना है तथा उस चैतन्यता द्वारा उस ईश्वर को प्राप्त करना एवं तद्वत् आचरण करना होता है ।।

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