वास्तविक अर्पण से भगवान् अत्यंत प्रसन्न होते हैं। इसका अर्थ यह नहीं कि अर्पण करने से भगवान् को कोई सहायता मिलती है।। परंतु अर्पण करने वाला कर्म बंधन से मुक्त हो जाता है, और इसी में भगवान् की प्रसन्नता है। जैसे छोटा बालक आंगन में पड़ी हुई चाबी पिताजी को सौंप देता है।। तो पिताजी प्रसन्न हो जाते हैं, जबकि छोटा बालक भी पिताजी का है, आंगन भी पिताजी का है। और चाबी भी पिताजी की है, पर वास्तव में पिताजी चाबी के मिलने से नहीं, प्रत्युत बालक का देने का भाव देखकर प्रसन्न होते हैं। और हाथ ऊंचा करके बालक से कहते हैं कि तू इतना बड़ा हो जा अर्थात् उसे अपने से भी ऊंचा बड़ा बना लेते हैं।। इसी प्रकार संपूर्ण पदार्थ, शरीर तथा शरीरी स्वयं भगवान् के ही हैं, अतः उनपर से अपनापन हटाने और उन्हें भगवान् को अर्पण करने का भाव देखकर ही वे भगवान् प्रसन्न हो जाते हैं। और उनके ऋणी हो जाते हैं।। एक दृष्टांत में भगवान श्री कृष्ण की विभिन्न लीलाओं में एक प्रमुख लीला है कालिया नागनाथन लीला ।कालिया नाग जीव की कामना और वासना का प्रतीक है। भक्ति स्वरूपा मां यमुना जी तो विवेक की प्रतीक हैं ।कालिया नाग ने पूरे यमुना जल को अपने जहर से दूषित कर दिया। अपनी तृष्णाओं एवं वासनाओं से किसी मनुष्य का पूरा जीवन दूषित हो जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने बताया कि कामना का भी जीवन में अपना महत्व होता है, इसलिए मारना कोई उपाय नहीं ,मोड़ना कामना से रक्षा का एक मात्र उपाय है। भगवान श्री कृष्ण मानव समाज के प्रतिनिधि बनकर हम सभी को अपनी कालिया नाग नाथन लीला संदेश देते हैं कि अपने विवेक का प्रयोग करके विवेकपूर्ण युक्ति से कामना से युद्ध अवश्य करते रहो लेकिन उसे मारो नहीं अपितु मोड़ों।जीवन के परम मंगल के लिए कामना को राममय बनाओ काममय नहीं।