




क्या आप जानते है कि भगवान शिव अपने शरीर पर भस्म ( राख ) धारण क्यों करते हैं ? आओं जरा चिंतन करें।
माना कि इस दुनियां में बहुत कुछ है। कहीं रत्नों की खानें है तो कहीं बहुमूल्य सम्पदायें तो कहीं स्वर्ण नगरी है तो कहीं रत्न जड़ित महल। कहीं मनोहर वाटिकाये है तो कहीं शीतल सरोवर। कहीं रेतीले रेगिस्तान है तो कहीं हरे भरे सुन्दर पहाड़ मगर इतना कुछ होने के बाद भी ये सारी वस्तुएं एक न एक दिन नष्ट होकर मिट्टी में ही मिलने वाली हैं अथवा राख का ढेर ही होने वाली हैं। इस संसार में जो कुछ भी आज है वह कल के लिए मात्र और मात्र एक राख का ढेर से ज्यादा कुछ भी नही हैं। जीवन का अंतिम और अमिट सत्य राख ही हैं। अतः राख ही प्रत्येक वस्तु का सार है और इसी सार तत्व को भगवान शिव अपने शरीर पर धारण करते हैं। भगवान शिव की भस्म कहती है कि किसी भी वस्तु का अभिमान मत करो, क्योंकि प्रत्येक वस्तु एक दिन मेरे सामने ही राख बन जाने वाली हैं। आपका बल, आपका वैभव, आपकी अकूत सम्पदा सब यही रह जाने हैं। प्रभु कृपा से जो भी आपको प्राप्त हुआ है उसे परमार्थ में, परोपकार में, सद्कार्यों में और सेवा कार्यों में लगाने के साथ-साथ मिल बांट कर खाना सीखें। यही मनुष्यता है, यही दैवत्व है और यही जीवन का परम सत्य व जीवन की परम सार्थकता हैं।