आत्मा ही एक मात्र अक्षय है :- पं०भरत उपाध्याय

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बगहा/मधुबनी। परशुराम जयंती के अवसर पर भगवान परशुराम का पूजन करते हुए पूर्व प्राचार्य पंडित भरत उपाध्याय ने कहा कि हर वर्ष वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को भगवान विष्णु के अवतार परशुरामजी की जयंती मनाई जाती है। अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम का जन्म प्रदोष काल में हुआ था, ऐसे में वैशाख तृतीया तिथि और प्रदोष काल में भगवान परशुराम का जन्मोत्सव मनाया जाता है। अक्षय तृतीया का पर्व हिंदू धर्म में विशेष स्थान रखता है। यह तिथि एक अबूझ मुहूर्त है, जिसमें किसी भी तरह का शुभ और मांगलिक कार्य बिना मुहूर्त का विचार कर किया जा सकता है। भगवान परशुराम के बारे में सतयुग से लेकर द्वापर युग और कलयुग में अनेक कथाएं मिलती हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार माने गए हैं। भगवान परशुराम कलयुग में मौजूद आठ चिरंजीवी में से एक हैं जो आज भी धरती पर मौजूद हैं। अक्षय तृतीया के दिन जन्म लेने के कारण ही भगवान परशुराम की शक्ति भी अक्षय थी। भगवान परशुराम भगवान शिव और भगवान विष्णु के संयुक्त अवतार माने जाते हैं। भगवान परशुराम ऋषि जमदग्रि की संतान थे। पिता की आज्ञा का पालन करते हुए भगवान परशुराम ने अपनी मां का वध कर दिया था। तब इस पाप से मुक्ति के लिए भगवान शिव की कठोर तपस्या थी।
भगवान परशुराम ने अपने माता- पिता के अपमान का बदला लेने के लिए 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय राजाओं से विहीन कर दिया था। भगवान परशुराम का स्वभाव क्रोधी था इस कारण सभी देव और दानव इनसे भयभीत रहा करते थे। भगवान परशुराम के क्रोध का सामना भगवान गणेश ने भी किया था। जब भगवान परशुराम कैलाश पर भगवान शिव से मिलने जा रहे थे तब श्री गणेश ने उन्हें मिलने से रोक दिया था, जिससे क्रोथ में आकर परशुराम जी ने गणेशजी का एक दांत तोड़ डाला था। तभी से भगवान गणेश का एक नाम एकदंत पड़ा।
इस अवसर पर आयोजक श्री निवास मणि, प्रधानाचार्य अम्बरीष मणि, ब्रज नारायण मणि त्रिपाठी, विकास उपाध्याय, अवधेश मिश्रा, प्रमोद मिश्रा, दिनेश गुप्ता सहित सैकड़ों लोग उपस्थित थे।

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