




मैं श्रेष्ठ हूं! यह आत्मविश्वास है, लेकिन मैं ही श्रेष्ठ हूं यह अहंकार है। स्कूल में ज्वाइन कर एक शिक्षक अपने शिक्षक गुरु को खुश खबरी देने पहुंचे -प्रणाम,सर! मुझे पहचाने?
गुरु जी -कौन? भाई, बता दो –शरीर अब साथ नहीं देता मेरा। शिक्षक -सर, मैं आपका 25 साल पहले का विद्यार्थी हूं।
गुरु जी -ओह! अच्छा-अच्छा आजकल ठीक से दिखता नहीं बेटा और याददाश्त भी कमजोर हो गई है। इसलिए नहीं पहचान पाया ।खैर ,आओ बैठो। उन्होंने उसे प्यार से बैठाया और पीठ पर हाथ फेरते हुए पूछा, क्या करते हो आजकल?
सर, मैं भी आपकी ही तरह शिक्षक बन गया हूं।
वाह! यह तो बहुत अच्छी बात है। लेकिन बेटा, शिक्षक की पगार तो बहुत कम होती है, फिर तुम शिक्षक क्यों बनें ।
सर जब मैं 1०वीं कक्षा में था, तब हमारी कक्षा में एक घटना घटी थी -उसी दिन आपने मुझे बचाया था, और उसी दिन मैंने ठान लिया था कि मैं शिक्षक ही बनूंगा -और वह भी बिल्कुल आपके जैसा! आज वह बात फिर से आपको याद दिलाता हूं- शायद मुझे भी याद आ जाए आपको ! अच्छा? क्या हुआ था तब? सर, सातवीं में हमारी कक्षा में एक अमीर लड़का पढ़ता था, जबकि हम बाकी सब बहुत गरीब थे। एक दिन वह बहुत महंगी घड़ी पहन कर आया था- और वही घड़ी चोरी हो गई थी- कुछ याद आया सर ? सातवीं कक्षा?? हां सर -उस दिन मेरा मन उस घड़ी पर आ गया था- खेल के पीरियड में जब उसने वह घड़ी अपने पेंसिल बॉक्स में रख दी थी, तो मैंने मौका देखकर चुरा ली- उसके बाद आपका पीरियड था -उस लड़के ने आपके पास घड़ी चोरी होने की शिकायत की! आपने कहा था कि जिसने भी वह घड़ी चुराई है, वह वापस करदे– आप उसे सजा नहीं देंगे- लेकिन डर के मारे मेरी हिम्मत ही न हुई घड़ी वापस करने की। फिर आपने कमरे का दरवाजा बंद किया और हम सबको एक लाइन में आंखें बंद कर खड़े होने को कहा- आपने कहा था कि आप सब की जेब देखेंगे ,लेकिन जब तक घड़ी मिल नहीं जाती, कोई आंखें नहीं खोलेगा वरना- उसे स्कूल से निकाल दिया जाएगा! हम सब आंखें बंद किए खड़े थे- आप एक-एक करके सब की जब देख रहे थे -जब आप मेरे पास आए ,तो मेरी धड़कन बहुत तेज हो गई -मुझे लगा मेरी चोरी पकड़ी जाएगी- मेरी पूरी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी -मैं ग्लानी से भर उठा था- उसी क्षण मन ही मन जान देने तक का निश्चय कर लिया था– लेकिन – (उसकी आवाज कांपने लगी-) लेकिन सर- मेरी जेब से घड़ी मिलने के बाद भी -आपने किसी को कुछ नहीं बताया -आप चुपचाप आगे बढ़े- बाकी सब की भी जेब देखी-और फिर अंत में घड़ी उस लड़के को लौटा दी- बस इतना ही कहा, अब ऐसी घड़ी पहन कर स्कूल मत आना -और जिसने भी यह चोरी की है वह दोबारा ऐसा ना करे ! फिर आप हमेशा की तरह पढ़ाने लगे- न मुझे सजा मिली- न शर्मिंदगी- न भेदभाव- ( उसकी आंखें भर आईं ) आपने मुझे सबके सामने चोर बनने से बचा लिया, सर–जीवन भर के लिए आपकी इस दया और समझदारी ने मुझे बदल दिया –उसी दिन मैंने निर्णय लिया था कि मैं भी आपके जैसा शिक्षक बनूंगा, जो बच्चों को सुधरने का अवसर दे,न कि उन्हें तोड़े। ( गुरु जी की आंखों में चमक आ गई–) हां- हां- अब मुझे याद आ रहा है! ( फिर कुछ सोच कर चकित से बोले-) लेकिन बेटा- मैं आज तक नहीं जानता था कि वह चोरी किसने की थी– क्योंकि जब मैं तुम सब की जब देख रहा था– तब मैंने भी अपनी आंखें बंद कर ली थीं!
ओह– (उस छात्र की आंखों से आंसू बह निकले-)
आज जिंदगी का एक और बड़ा पाठ आपसे सीख कर जा रहा हूं, सर– संवेदनशीलता, समझ और सच्चे गुरु की यही पहचान होती है– जो बच्चों की गलतियों को सुधारने का अवसर देते हैं, न कि उन्हें हमेशा के लिए दोषी बना देते हैं।
इल्मों अदब के सारे खजाने गुजर गए, क्या खूब थे वे लोग पुराने गुजर गए। बाकी है फकत जमीं पे आदमी की भीड़,इंसा को मरे हुए जमाने गुजर गए।
एक पार्टी में जहाँ कई मशहूर लोग मौजूद थे, एक शिक्षक मंच पर छड़ी के सहारे आए और अपनी सीट पर बैठ गए।
होस्ट ने पूछा, “क्या आप अब भी डॉक्टर के पास अक्सर जाते हैं?”शिक्षक बोले, “हाँ, मैं तो अक्सर जाता हूँ!”
होस्ट ने पूछा, “क्यों?”शिक्षक मुस्कराकर बोले, “मरीज़ों को तो डॉक्टर के पास जाना ही चाहिए, *तभी तो डॉक्टर ज़िंदा रहेंगे!” श्रोता तालियों से झूम उठे उस शिक्षक की हाज़िरजवाबी पर। फिर होस्ट ने पूछा, “तो क्या आप फार्मासिस्ट के पास भी जाते हैं?”शिक्षक बोले, “ज़रूर!
क्योंकि फार्मासिस्ट को भी तो जीना है!
अबकी बार और ज़्यादा तालियाँ बजीं। होस्ट ने हँसते हुए पूछा, “तो फिर क्या आप फार्मासिस्ट की दी हुई दवा भी लेते हैं?”
शिक्षक बोले, “नहीं! दवाइयाँ तो अक्सर फेंक देता हूँ
मुझे भी तो जीना है!
इस पर तो पूरा हॉल ठहाकों से गूंज उठा। अंत में होस्ट ने कहा, “आपका धन्यवाद कि आप इस इंटरव्यू के लिए आए।”
शिक्षक बोले, “आपका स्वागत है! मुझे मालूम है, *आपको भी तो जीना है!”श्रोता इतने हँसे कि देर तक तालियाँ बजती रहीं। फिर एक और सवाल हुआ, “क्या आप अपने व्हाट्सएप ग्रुप में भी एक्टिव रहते हैं?”शिक्षक बोले, “हाँ, बीच-बीच में मैसेज भेजता रहता हूँ,
ताकि सबको लगे कि मैं ज़िंदा हूँ!
वरना सब समझेंगे कि मैं चला गया और ग्रुप एडमिन मुझे हटा देगा!
लोगों को पता चलता रहना चाहिए कि हम ज़िंदा हैं, खुश हैं, और तंदुरुस्त हैं — शरीर से भी और मन से भी!