



ईश्वर की बनाई यह सृष्टि विभिन्न खजानों से भरी हुई है और देखिए! एक भी चौकीदार नहीं है!ईश्वर की व्यवस्था ऐसी है कि दुनिया में अरबों व्यक्तियों का आवागमन प्रतिवर्ष होता है, किंतु यहां से कोई भी एक तिल्ली तक नहीं ले जा सकता। अभिभावक बच्चों को केवल शिक्षा ही नहीं बल्कि मनुष्य होने के मूल- करुणा, सहयोग, सम्मान और संवेदना सिखाएं! विद्यालयों को भी प्रतिस्पर्धा और अंक के दबाव से आगे बढ़कर ऐसी गतिविधियां बढ़ानी होंगी ,जो बच्चों को समाज से जोड़ें! उन्हें जिम्मेदारी और मानवीय मूल्य समझाएं। किसी को क्रोध की अपेक्षा प्रेम के द्वारा वश में करना आसान होता है । जीवन में जिससे हारने में हँसी हो तथा जीतने में पाप और दुःख हो, उससे स्वयं ही सँभलकर रहना चाहिए । जो शहद से ही मर जाय उसे जहर देकर कभी नहीं मारना चाहिये। परशुरामजी सारे जगत को जीतकर भी श्रीराम जी की मधुमयी वाणी से हार गये और श्रीरघुनाथजी परशुरामजी के सामने अपनी हार मानकर भी जीत गये ॥ हित के वचन वैर की जड़ को काटनेवाले हैं और हित करना तो प्रेम की जड़ ही है। आप स्वयं विचार करके देखें विनम्र रहना तो शुभ का कलश है ।










