




जिला ब्यूरो, विवेक कुमार सिंह
बेतिया/वाल्मीकिनगर। सावन के पावन अवसर पर वाल्मीकि नगर में शिव भक्तों की भीड़ देखी जा रही है।
जटाशंकर धाम और महा कालेश्वर धाम आदि मंदिरों में केसरिया कपड़ों में कांवरियों की भीड़ देखी जा रही है। रामनगर से आए भक्त अभिषेक कुमार,राजू गुप्ता, अमरेन्द्र कुमार, आकाश कुमार आदि शिव भक्तों ने बताया कि हम लोग हर वर्ष वाल्मीकिनगर स्थित नारायणी संगम तट से जल बोझी कर रामनगर स्थित नर्मदेश्वर महादेव को जल अर्पण करते हैं। जटाशंकर बाबा और कालेश्वर बाबा हम सभी भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। नर देवी माता मंदिर परिसर में भी दर्शन हेतु भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। संगम तट से जल लेकर जटाशंकर मंदिर में संकल्प लेकर विभिन्न शिवालयों के लिए प्रस्थान करते हैं। वाल्मीकि नगर से कांवरिया बनकर भक्त नर्मदेश्वर महादेव रामनगर,पंचमुखी महादेव इटहिया महाराजगंज उत्तर-प्रदेश एवं पूर्वी चंपारण के सोमेश्वर महादेव आदि मंदिरों के लिए प्रस्थान करते हैं।
सुरक्षा के व्यापक इंतजाम
जटाशंकर धाम मंदिर में कांवरियों की सुरक्षा हेतु पुलिस बल की नियुक्ति की गई है। वहीं ऐतिहासिक गंडक बराज परिसर में सीसीटीवी कैमरे की देखरेख में संदिग्धों पर नजर रखी जा रही है। श्रावणी मेला को लेकर एसएसबी चौकस हैं। नेपाल आने व जाने वालों संदिग्धों की सघन तलाशी ली जा रही है। मंदिर का इतिहास
जटाशंकर धाम मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है। कहते हैं कि महान प्रतापी योद्धा आल्हा रुदल के पिता राजा जासर के द्वारा इस मंदिर का निर्माण कराया गया था। त्रेता युग में बाणासुर से हुए युद्ध के क्रम में शंकर भगवान के जटा का कुछ भाग एवं गंगाजल की कुछ बूंदें इस स्थान पर गिरी थी। उसी समय से इस मंदिर का नाम जटाशंकर धाम मंदिर पड़ गया। यह एक सिद्ध स्थल है । पौराणिक कथाओं के मुताबिक महर्षि वाल्मीकि मुनि का एक शिष्य इस स्थान पर नित्य पूजा पाठ करने आता था। शंकर भगवान उस भक्त के स्वप्न में आए और कहा कि यहां से थोड़ी दूरी पर गंडक नदी के तट पर मेरा एक शिवलिंग पड़ा हुआ है। तुम उसे यहां लेकर आओ और इस मंदिर मे स्थापित करो। भगवान के आदेश के मुताबिक वह भक्त शिवलिंग को लाकर मंदिर में स्थापित किया और पूजा अर्चना करने लगा। उस समय वाल्मीकि नगर में घनघोर जंगल हुआ करता था। तथा भगवान भोलेनाथ को दुग्धाभिषेक करने के लिए दूध का अभाव था। भगवान भोलेनाथ का वह भक्त जब गंगा स्नान कर रहा था तो उसने माता गंगा से दूध की कमी को बताया और एक गाय के लिए विनती की। फिर क्या था। मां गंगा के आशीर्वाद से अगले ही दिन एक सुंदर सी गाय जटाशंकर मंदिर परिसर में प्रकट हुई। जिसने एक सुंदर से बछड़े को जन्म दिया। उस समय से आज तक देवों के देव महादेव का दुग्धाभिषेक निरंतर होता चला आ रहा है।
मंदिर की विशेषता
जटाशंकर धाम मंदिर अन्य शिवालयों से अलग हटकर है। मंदिर के महंत के मुताबिक जटाशंकर मंदिर के प्रांगण में हिंसक जीव-जंतुओं के भेष में अक्सर देवी देवताओं का आगमन होता है। हिंसक जीव होते हुए भी ये किसी भी इंसान को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। और अपना दर्शन देकर वे अंतर्ध्यान हो जाते हैं।
यहां उत्तर प्रदेश नेपाल एवं बिहार के शिव भक्तों का जनसैलाब श्रावण मास में उमड़ता है।
मंदिर के महंत श्याम पुरी ने बताया कि प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि एवं सावन माह में यहां भारी मेला लगता है। तथा भक्तों की मुरादें भगवान भोलेनाथ पूरी करते हैं।