




बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव में एक धनी जमींदार रहता था। उसकी दौलत का कोई हिसाब नहीं था—खेती-बाड़ी, जमीन-जायदाद, गहने, रुपये—सब कुछ था उसके पास। परंतु जितना वह धनी था, उतना ही वह कंजूस भी था। वह कभी किसी को कुछ देता नहीं था, न किसी जरूरतमंद की मदद करता, न खुद अपने पैसे का कोई सुख भोगता।
उसकी कंजूसी इतनी अधिक थी कि वह अपने धन को तिजोरी में रखने की जगह सोने में बदल देता और फिर उन सोने के गोलों को खेत में एक विशेष पेड़ के नीचे गड्ढा खोदकर गाड़ देता। रोज वह खेत में जाता, गड्ढा खोदता, सोने के गोलों को गिनता और फिर उन्हें वापस गड्ढे में रखकर ऊपर से मिट्टी डाल देता। यह उसकी रोज़ की दिनचर्या बन गई थी—बस गिनती करना, और तसल्ली करना कि सोना सुरक्षित है। एक दिन, एक चतुर चोर ने उसे यह करते हुए देख लिया। वह पेड़ के पास छिप गया और कंजूस के जाने का इंतजार करने लगा। जैसे ही कंजूस वापस गया, चोर फुर्ती से आया, गड्ढा खोदा और सारा सोना निकालकर चुपचाप वहाँ से भाग गया। अगले दिन जब कंजूस रोज की तरह अपने खेत में पहुँचा, गड्ढा खोदा, तो यह देखकर उसके होश उड़ गए कि सोने का एक भी गोला वहाँ नहीं था। वह ज़ोर-ज़ोर से रोने और चिल्लाने लगा। “मेरा सोना! मेरा कीमती सोना! कोई सब कुछ लूट ले गया… अब मैं क्या करूँगा?”उसकी यह आवाज़ सुनकर एक राहगीर जो उसी रास्ते से गुजर रहा था, रुक गया और कंजूस से पूछा, “भाई, क्या हुआ? क्यों इतना रो रहे हो?”कंजूस आदमी बिलखते हुए बोला, “मैं बरबाद हो गया! किसी ने मेरा सारा सोना चुरा लिया। मैंने वो सोना इस पेड़ के नीचे गाड़ा था और रोज आकर उसे गिनता था। आज आया, तो सब गायब है। राहगीर हैरान होकर बोला, “तुम अपना सोना यहाँ गड्ढे में रखते थे? क्यों? उसे घर में क्यों नहीं रखा? ज़रूरत पड़ती तो काम भी आता। कंजूस बोला,“नहीं-नहीं! मैं उसे कभी खर्च नहीं करता था। मैं तो बस गिनता था। देखता था कि कहीं कम तो नहीं हुआ। उसे कभी हाथ भी नहीं लगाता था।”
राहगीर ने मुस्कराते हुए पास से कुछ कंकड़ उठाए और गड्ढे में डाल दिए। फिर उसने कहा, “भाई, तो अब इन कंकड़ों को ही अपना सोना समझो। इन्हें गड्ढे में डाल दो और रोज आकर इन्हें गिन लिया करो। फर्क ही क्या है? तुम्हारा सोना भी उसी तरह बेकार था जैसे ये कंकड़ हैं। जब उसका कोई उपयोग ही नहीं था, तो उसका होना-न होना बराबर है। असली धन वह है, जो जरूरत पर काम आए। जो केवल संचित रहे और उपयोग में न आए, उसका कोई मोल नहीं होता। कंजूस आदमी शर्मिंदा होकर चुप रह गया। उसे आज समझ आया कि केवल धन जमा करना ही पर्याप्त नहीं है। यदि धन का उपयोग नहीं किया जाए, तो उसका कोई महत्व नहीं रहता। धन का मूल्य तभी है जब वह समय पर उपयोग में लाया जाए। केवल संग्रह करने से न तो उसका कोई लाभ होता है, और न ही वह जीवन में सुख देता है। बिना उपयोग का धन केवल कंकड़-पत्थर के समान है।