क्रोध का जबाब शांत होकर मुस्कुरा कर दें -आचार्य हरेंद्र उपाध्याय “मुनि जी”

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बगहा/मधुबनी। बगहा अनुमंडल अंतर्गत मधुबनी प्रखंड स्थित राजकीय कृत हरदेव प्रसाद इंटरमीडिएट कॉलेज के पूर्व प्राचार्य पं०भरत उपाध्याय को काशी प्रांत से पधारे श्री मद्भागवत कथा वाचक श्रेष्ठ विद्वान आचार्य हरेंद्र उपाध्याय “मुनि जी”ने अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया। मुनि जी ने मार्कण्डेय दूबे जी केआवास पर आज की कथामृत पान कराते हुए कहा कि –
भगवान श्री कृष्ण जी एक लीला किए ,एक बार श्री कृष्ण, बलराम एवं सात्यकि रात्रि के समय रास्ता भटक गये। सघन वन था; न आगे राह सूझती थी न पीछे लौट सकते थे। निर्णय हुआ कि घोड़ो को बांध कर यहीं रात्रि में विश्राम किया जाय। तय हुआ कि तीनो बारी-बारी जाग कर पहरा देंगे।
सबसे पहले सात्यकि जागे बाकी दोनो सो गये। एक पिशाच पेड़ से उतरा और सात्यकि को मल्ल-युद्ध के लिए ललकारने लगा। पिशाच की ललकार सुन कर सात्यकि अत्यंत क्रोधित हो गये। दोनो में मल्लयुद्ध होने लगा। जैसे -जैसे पिशाच क्रोध करता सात्यकि दुगने क्रोध से लड़ने लगते। सात्यकि जितना अधिक क्रोध करते उतना ही पिशाच का आकार बढ़ता जाता। मल्ल-युद्ध में सात्यकि को बहुत चोटें आईं। एक प्रहर बीत गया अब बलराम जागे। सात्यकि ने उन्हें कुछ न बताया और सो गये। बलदेव को भी पिशाच की ललकार सुनाई दी। बलराम क्रोध-पूर्वक पिशाच से भिड़ गये। लड़ते हुए एक प्रहर बीत गया उनका भी सात्यकि जैसा हाल हुआ। अब श्री कृष्ण के जागने की बारी थी। बलराम ने भी उन्हें कुछ न बताया एवं सो गये। श्री कृष्ण के सामने भी पिशाच की चुनौती आई। पिशाच जितना अधिक क्रोध में श्री कृष्ण को संबोधित करता श्री कृष्ण उतने ही शांत-भाव से मुस्करा देते; पिशाच का आकार घटता जाता। अंत में वह एक कीड़े जितना रह गया जिसे श्री कृष्ण ने अपने पटुके के छोर में बांध लिया। प्रात:काल सात्यकि व बलराम ने अपनी दुर्गति की कहानी श्री कृष्ण को सुनाई तो श्री कृष्ण ने मुस्करा कर उस कीड़े को दिखाते हुए कहा -यही है वह क्रोध-रूपी पिशाच जितना तुम क्रोध करते थे इसका आकार उतना ही बढ़ता जाता था। पर जब मैंने इसके क्रोध का प्रतिकार क्रोध से न देकर तो शांत-भाव से दिया तो यह हतोत्साहित हो कर दुर्बल और छोटा हो गया। अतः क्रोध पर विजय पाने के लिये संयम से काम ले। जब कोई आपसे ईर्ष्या द्वेष नफरत करे तो आप बिल्कुल कोई चिंता न करें , और न कोई जबाब दें ऐसे लोगों को । ऐसे लोग वो बेचारे निकृष्ट जीव होते हैं जो अपने ही ईर्ष्या, नफरत रूपी लकड़ियों द्वारा तैयार अपने ही चिता में अपने ही हाथों द्वेष नामक घी डाल कर अपने ही हृदय के जलन रूपी आग से आग निकाल कर, आग लगा कर स्वयं का विनाश लिख लेते हैं,और जल कर भष्म हो जाते हैं । ऐसे लोग बेचारा प्रकृति का जीव कहलाते हैं। इनका कल्याण कभी नहीं हो सकता । इनका कल्याण भगवान तथा महापुरूष भी नहीं कर सकते कभी। इस अवसर पर सुशील कुमार दुबे, सिंटू कुमार दुबे, अमित कुमार दुबे, दिनेश कुमार गुप्ता सहित सैकड़ो लोग कथामृतपान किया।

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