




सहनशीलता और समर्पण समाज में आपकी उपयोगिता और मूल्य दोनों को बढ़ा देते हैं। किसी ने कटु वचन कहे तो सह लिया और किसी ने यथोचित सम्मान न दिया तो सह लिया। कभी आपके मनोनुकूल कोई कार्य न हुआ तो सह लिया और कभी कहीं आपकी आलोचना भी होने लगी तो मौन धारण कर लिया, बस इसी का नाम सहनशीलता है। जिस तरह एक जौहरी किसी मूल्यवान आभूषण के निर्माण से पहले स्वर्ण को अग्नि में तपाता है, पीटता है लेकिन इतने आघातों को सहने के बावजूद भी स्वर्ण कभी विरोध नहीं करता इसी को समर्पण कहा जाता है। आपकी सहनशीलता एवं आपके द्वारा किया गया समर्पण ही समाज में आपके जीवन को एक श्रेष्ठ, आदर्श एवं उदाहरण के रूप में प्रतिष्ठित कर देता है। “धैर्य शांति से प्रतीक्षा करने या बिना किसी शिकायत या क्रोध के कठिनाई को सहने की क्षमता है। यह आमतौर पर इस प्रकार है कि किसी के धैर्य को किसी तरह से पुरस्कृत किया जाएगा, सकारात्मक परिणाम या वस्तुनिष्ठ तर्क या मन की शांति के साथ ।”