हमारे पूर्वज हम से वैज्ञानिक रूप से बहुत आगे थे:- पं०भरत उपाध्याय

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बिहार। मिट्टी के बर्तनों से स्टील और प्लास्टिक के बर्तनों तक और फिर कैंसर के खौफ से दोबारा मिट्टी के बर्तनों तक आ जाना। अंगूठाछाप से दस्तखतों पर और फिर अंगूठाछाप (Thumb Scanning) पर आ जाना। फटे हुए सादा कपड़ों से साफ सुथरे और प्रेस किए कपड़ों पर और फिर फैशन के नाम पर अपनी पैंटें फाड़ लेना। सूती से टैरीलीन, टैरीकॉट और फिर वापस सूती पर आ जाना। ज्यादा मेहनत वाली ज़िंदगी से घबरा कर पढ़ना लिखना और फिर IIM MBA करके आर्गेनिक खेती पर पसीने बहाना। क़ुदरती से प्रोसेसफ़ूड पर और फिर बीमारियों से बचने के लिए दोबारा क़ुदरती खानों पर आ जाना। पुरानी और सादा चीज़ें इस्तेमाल ना करके ब्रांडेड पर और फिर आखिरकार जी भर जाने पर पुरानी ( Antique ) पर उतरना। बच्चों को इंफेक्शन से डराकर मिट्टी में खेलने से रोकना और फिर घर में बंद करके फिसड्डी बनाना और होश आने पर दोबारा Immunity बढ़ाने के नाम पर मिट्टी से खिलाना…. गाँव, जंगल, से डिस्को पब और चकाचौंध की और भागती हुई दुनियाँ की और से फिर मन की शाँति एवं स्वास्थ के लिये शहर से जँगल गाँव की ओर आना। इससे ये निष्कर्ष निकलता है कि टेक्नॉलॉजी ने जो दिया उससे बेहतर तो प्रकृति ने पहले से दे रखा था। संस्कार इसलिए कम हो गए हैं बच्चों में पहले बुजुर्गों से सीखते थे अब गूगल से….

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