



प्रशिक्षण में वाल्मीकिनगर, रोहतास, कैमूर और मुंगेर के 35 मास्टर ट्रेनर हुए शामिल
जिला ब्यूरो, विवेक कुमार सिंह
बेतिया/वाल्मीकिनगर:- वाल्मीकिनगर स्थित वीटीआर के सभागार में तीन दिवसीय मास्टर ट्रेनरों को ट्रेनिंग दी जा रही है। प्रशिक्षण में वाल्मीकिनगर, रोहतास, कैमूर और मुंगेर के 35 मास्टर ट्रेनर शामिल हुए हैं। इन्हें थ्योरी के साथ फील्ड में जाकर बाघ गणना की तकनीक और सावधानियां समझाई जा रही हैं।
35 मास्टर ट्रेनर देंगे फील्ड टीम को प्रशिक्षण
ये मास्टर ट्रेनर रेंज स्तर के कर्मचारियों को ट्रेनिंग देंगे। बताते चले कि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) की ओर से देशभर में हर चार वर्ष के अंतराल पर राष्ट्रीय बाघ गणना कराई जाती है। पिछली गणना वर्ष 2022 में संपन्न हुई थी। उस गणना के दौरान वीटीआर में 54 बाघों की मौजूदगी दर्ज की गई थी। इसके तहत तीन दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन कर गणना की बारीकियां समझाई जा रही है । वीटीआर में 400 से अधिक कैमरों को लगाने का कार्य पूरा होने के बाद बाघ गणना की प्रक्रिया शुरू की जा रही है।
तीन चरणों में होगी बाघों की गणना
सीएफ नेशमणि के अनुसार पहले चरण में साइन सर्वे किया जाएगा। इसमें बाघ और तेंदुए की साइटिंग, पैरों के निशान और अन्य संकेतों के आधार पर उनकी मौजूदगी का आकलन किया जाएगा। इसी चरण में बाघों के भोजन यानी शाकाहारी वन्यजीवों के घनत्व और उनके आवास में मानव हस्तक्षेप का भी अध्ययन होगा। दूसरे चरण में रिमोट सेंसिंग के माध्यम से जंगल के रास्तों, जलस्रोतों और प्रकाश की स्थिति का आकलन किया जाएगा। अंतिम चरण में कैमरा ट्रैपिंग के जरिए धारियों के विशिष्ट पैटर्न के आधार पर बाघों की सटीक पहचान और संख्या निर्धारित की जाएगी। प्रथम चरण में फील्ड सर्वे होना है। इसके लिए वन कर्मियों को खास प्रशिक्षित किया गया है। इस गणना से बाघों की संख्या का आंकलन के साथ वीटीआर के पारितंत्र की सेहत का भी वैज्ञानिक मूल्यांकन हो सकेगा।
अखिल भारतीय बाघ गणना एक वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त वैज्ञानिक पद्धति से की जाती है, जिसका अपना अलग ‘मेथडोलॉजी फ्रेमवर्क’ है। यह पद्धति विश्वभर में एक समान पैमानों पर लागू की जाती है। इसी मानकीकृत प्रणाली के तहत यह गणना चार चरणों में पूरी की जाएगी, जिसमें पहला चरण फील्ड सर्वे है। फील्ड सर्वे के लिए वन रक्षकों और वन दारोगाओं को वैज्ञानिक, तकनीकी और व्यावहारिक स्तर पर विशेष प्रशिक्षण दिया जा रहा है। प्रशिक्षण के दौरान बाघों के पगचिह्न, मल, खरोंच के निशान, शिकार अवशेष और आवासीय संकेतों की पहचान के साथ-साथ सटीक डेटा संकलन की विधियां सिखाई जा रही हैं। इस बार बाघ गणना को पूरी तरह डिजिटल और पेपरलेस बनाया गया है। इसके लिए एम-स्ट्राइप्स इकोलॉजिकल ऐप का उपयोग किया जाएगा, जिसके माध्यम से मोबाइल आधारित डेटा संग्रह होगा। ऐप में जीपीएस-आधारित ट्रैकिंग, लोकेशन टैगिंग और रियल टाइम डेटा एंट्री की सुविधा उपलब्ध है। इस तकनीकी प्रणाली को लेकर भी फील्ड स्टाफ को विस्तृत प्रशिक्षण दिया गया है, ताकि आंकड़ों की सटीकता और विश्वसनीयता को सुनिश्चित की जा सके।प्रशिक्षण के दौरान गणना के वैज्ञानिक पहलुओं, डेटा संग्रह और विश्लेषण की प्रक्रिया को विस्तार से समझाया जा रहा है, ताकि गणना पूरी तरह से सटीक और विश्वसनीय हो सके।इस बार बाघ गणना में कैमरा ट्रैप तकनीक को प्रमुख रूप से इस्तेमाल किया जा रहा है। यह तकनीक बाघों की पहचान के लिए सबसे आधुनिक और भरोसेमंद मानी जाती है। कैमरा ट्रैप से ली गई तस्वीरों में बाघों की धारियों के पैटर्न के आधार पर उनकी पहचान की जाती है।

कैसे होती है गिनती
बाघों की गणना करने की प्रक्रिया, इसके लिए घने जंगलों के बीच बाघों की संभावित मौजूदगी वाले स्थानों में मौजूद पेड़ों पर ठीक आमने-सामने 2 ट्रैप कैमरे लगाए जाते हैं, जिनमें लगा सेंसर किसी भी वन्यजीव के आने-जाने पर उनकी तस्वीर कैद कर लेता है। इसके बाद एक तय समय तक कैमरे में कैद की गई तस्वीरों में से बाघों की तस्वीरों को अलग किया जाता है। बाघों की धारियां, मानवों के फिंगरप्रिंट जैसी यूनिक होती हैं।बाघों के शरीर पर मौजूद धारियों की तस्वीरों के आधार पर विशेषज्ञ संख्या का अनुमान लगाते हैं।अखिल भारतीय बाघ गणना का महत्व केवल बाघों की वास्तविक संख्या जानने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सर्वेक्षण भारत के वन्यजीव संरक्षण ढांचे की सबसे महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रक्रिया माना जाता है। बाघों की सापेक्ष प्रचुरता, उनके घनत्व, जनसंख्या में समय के साथ होने वाले बदलाव, आवास की गुणवत्ता और शिकार आधार की उपलब्धता जैसे कई अहम मानकों का आकलन इसी प्रक्रिया के माध्यम से किया जाता है। यही कारण है कि हर चार वर्ष में होने वाला यह सर्वेक्षण नीति-निर्माताओं, संरक्षण योजनाकारों और वन विभाग के प्रबंधन प्रकोष्ठों के लिए अत्यंत उपयोगी साबित होता है।
बाघ केवल एक शिकारी प्रजाति नहीं, बल्कि वन पारिस्थितिकी तंत्र का शीर्ष शिकारी है।इसकी स्थिर और स्वस्थ उपस्थिति किसी भी जंगल के समग्र स्वास्थ्य, जैव विविधता और खाद्य-श्रंखला की मजबूती का प्रमुख संकेतक मानी जाती है। इस प्रशिक्षण में प्रतिभागियों को बाघ मॉनिटरिंग की नवीनतम तकनीकों, कैमरा ट्रैपिंग विधियों, पगमार्क विश्लेषण, फील्ड डेटा कलेक्शन, आवास स्वास्थ्य मूल्यांकन और शिकार प्रजातियों के आंकलन जैसे विषयों पर विस्तृत जानकारी प्रदान की गई। प्रशिक्षण का उद्देश्य फील्ड स्टाफ की तकनीकी दक्षता बढ़ाकर गणना को अधिक सटीक, वैज्ञानिक और मानक आधारित बनाना है। मौके पर फील्ड बायोलॉजिस्ट सौरभ वर्मा, पंकज ओझा, अहवर आलम आदि मौजूद रहे।










