वीटीआर में ज्वलनशील पदार्थ के साथ पकड़‌े जाने पर तीन साल की सजा एवं एक लाख रुपए का जुर्माना लगेगा।

0
218



Spread the love

वाल्मीकिनगर। मौसम का मिजाज तल्ख होते ही वीटीआर के जंगलों में अगलगी की घटनाओं की आशंका भी बढ़ गई है।
वीटीआर प्रशासन जंगल की आग की रोकथाम और प्रबंधन को पूरी तैयारी होने की बात जरूर कह रहा है, लेकिन अक्सर बड़ी घटनाओं में वन विभाग बेबस नजर आता है। इसीलिए इस बार जनसहयोग के लिए आम जनता से गुहार लगाई जा रही है। ताकि, सामूहिक प्रयासों से जंगल की आग की रोकथाम कर प्राकृतिक संपदा को बचाया जा सके।

सबसे संवेदनशील समय

वीटीआर में वनों की आग के लिहाज से सबसे संवेदनशील समय शुरू हो चुका है। यह है फायर सीजन (15 फरवरी से मानसून आने तक की अवधि)। इसी सीजन के दौरान वीटीआर में सबसे अधिक अगलगी की घटना सामने आती है। और हर साल बड़े पैमाने पर वन संपदा की क्षति होती है। हालांकि वीटीआर के अधिकारी और कर्मचारी दिन-रात आग बुझाने में जुटे हुए हैं। फायर वाचर भी अपनी ड्यूटी निभाते हुए आग पर काबू पाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। कई जगहों पर आग बुझाने के लिए पानी के टैंकरों और परंपरागत तरीकों का उपयोग किया जा रहा है, लेकिन बार-बार आग लगने की घटनाएं वन विभाग के लिए चुनौती बन गई है। वन अधिकारियों का कहना है कि जंगल की आग से न केवल वनस्पति को नुकसान पहुंचता है, बल्कि जंगल में रहने वाले जीव-जंतु भी प्रभावित होते हैं। आग के कारण छोटे जीवों का जीवन खतरे में पड़ जाता है। वहीं, बड़े जानवरों को अपना आशियाना छोड़कर अन्यत्र जाना पड़ता है। इससे जंगल के पारिस्थितिक संतुलन पर गहरा असर पड़ता है। वनों में आग से बचाव के लिए चेतावनी बोर्ड लगाया गया है। चेतावनी बोर्ड में आग के खतरों और इससे बचने के तरीकों के बारे में जानकारी दी गई है। वनों में आग लगने से जानमाल की हानि, पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान, और वायु प्रदूषण हो सकता है।

वन विभाग ने जारी किया संपर्क नंबर

इस बोर्ड पर वनों को आग से बचाने के लिए आम लोगो से सहयोग की अपील करते हुए सम्पर्क नंबर 6202997914 जारी किया गया है। जंगलों को आग से बचाने में वन विभाग का सहयोग करें और कहीं भी आग लगने पर विभाग को सूचित करें। इस बाबत वाल्मीकिनगर रेंजर श्रीनिवासन नवीन ने बताया कि 95 प्रतिशत वनाग्नि मानवीय भूल के कारण लगती है और हर वर्ष दर्जनो एकड़ वन आग से प्रभावित होते हैं। उन्होंने कहा कि वनों में आग लगने से पर्यावरणीय संकट पैदा होने के साथ ही जंगली जानवरों को भी नुकसान पहुंचता है। जंगलों में आग लगने से पानी के प्राकृतिक स्रोत भी सूख जाते हैं। इससे गर्मियों में पेयजल संकट पैदा हो जाता है। जंगलों को आग से बचाने के लिए ज्वलनशील पदार्थो को हमेशा जंगलो से दूर रखना चाहिए और जंगली रास्तों से गुजरते समय जलती हुई माचिस की तीली व बीड़ी, सिगरेट जंगल में नहीं डालनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जंगल पर्यावरण के अभिन्न अंग हैं, इनकी रक्षा करना प्रत्येक मानव का कर्तव्य है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here