




प्रख्यात पर्यावरणविद् एवं पूर्व प्राचार्य पं०भरत उपाध्याय ने कहा कि बांसी धाम मेले का अस्तित्व खतरे में है।कौन कहेगा बांसी धाम! यह अपने अंदर धार्मिक ऐतिहासिक महात्म्य और परम्पराओं को लेकर प्रसिद्धि पा चुका हूं ! यहां प्रभु श्री राम की बारात जनकपुर से लौटते समय रुकी थी। दूसरे दिन कार्तिक पूर्णिमा के दिन विख्यात रामघाट पर प्रभु श्रीराम एवं उनके परिकर ने स्नान, ध्यान , पूजन किया । तबसे ही कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां विशाल मेला लगता है। कभी बांसी बहुत पवित्र नदी थी, इसका जल निर्मल था। आज जलकुंभी ,शेवार ,कूड़ा-करकट,पांक, के अलावा शेष प्रदूषित जल कीचड़ युक्त है, ना, तो इसमें नहाया जा सकता है और ना ही आचमन किया जा सकता है। फिर भी लोगों की आस्था, श्रद्धा इतनी है कि दूर-दूर से आकर श्रद्धालु,जब बांसी तट पर खड़े होते हैं, तो उनके मुंह से निकलता है !यही बांसी हैं , यह तो किसी गंदे तालाब जैसा लग रहा है। खेदकी बात यह है कि, बांसी नदी से बांसी धाम काअस्तित्व है!यदि बांसी नदी की उपेक्षा इसी तरह होता रहा ,तो वह दिन दूर नहीं है, कि बांसी धाम से प्रचलित यह स्थान मृत प्राय हो जाएगा। ऐसे में स्थानीय जनप्रतिनिधियों एवं प्रशासन, ध्यान देकर बांसी नदी के अस्तित्व को बचाने का भरपूर प्रयास करें। ताकि बांसी धाम बिहार ,उत्तर प्रदेश, नेपाल तक के श्रद्धालुओं का आकर्षण केंद्र बना रहे।