भौतिक जगत की विचित्रता, अच्छाई की आड़ में बुराई का व्यापार जोरों पर :- पं0 भरत उपाध्याय

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यहाँ भोगों में सिर से पैर तक डूबा भोग-वादी रावण भी है, भोगों से सावधानी बरतता अंगद भी है, अनुराग व वैराग में रचे-बसे श्री हनुमान जी भी हैं। एक तो हम सबको विचार करना चाहिए कि भोग भोगने में हम किस तल पर खड़े हैं ?
दूसरा, इस जगत में सोते तो सब हैं, कुमति का कुंभकर्ण भी सोता है, सुमति का विभीषण भी सोता है। पर दोनो में एक अंतर है।कुमति को भोगी रावण जगाता है, सुमति को वैरागी श्री हनुमान जगाते हैं। यदि हम भोगी हैं तो दुख की जननी कुमति जाग जाती है, वैरागी को शांतिप्रद सुमति जगा देती है।एक और बड़ी गंभीर बात है कि यह रावण पूर्वजन्म में हिरण्यकशिपु था। इसने प्रह्लाद को भक्ति करने से रोका था, तो जल्दी मर गया। लेकिन इस बार विभीषण की वृत्ति देखकर रावण ने उसे रोका नहीं, बल्कि सभी सुविधाएं दे दी, मंदिर भी बनवा दिया। हमारा मन, हमसे बस यही खेल खेलता है, थोड़े से सत्कर्म से संतुष्ट हो जाता है और पाप कर्म करने लगता है। सत्कर्म की आड़ में पाप का कारोबार चलाता है। विभीषण का मंदिर रावण के महल के पास ही था, पर रावण ने उसे तोड़ा नहीं। और रावण तो केवल उदाहरण मात्र है – बड़े दुख की बात है कि आज हम सभी यही कर रहे हैं। ध्यानदें- *रावण जबहिं विभीषण त्यागा। भयऊ विभव बिनु तबहिं अभागा॥ अस कहि चला विभीषण जबहिं। आयुहीन भए रावण तबहिं॥ क्यों ? क्योंकि विभीषण के सत्कर्म ही रावण को आयु दे रहे थे, जैसे जालंधर की पत्नी का पतिव्रत धर्म जालंधर को आयु दे रहा था।धर्म यदि अधर्म का कवच पहन ले, तो अधर्म की छाती में तीर मारने के लिए, ऐसे मिथ्या धर्म का कवच तोड़ना पड़ता है।
जैसे कर्ण धर्म रथ पर है, पर दुर्योधन की ढाल बना है, सूर्य का पुत्र होकर, अंधकार की परंपरा का साथ दे रहा है। तो जो प्रकाश अंधेरे की सहायता कर रहा है, उस प्रकाश को ही नष्ट कर दिया गया। पाप को बढ़ावा देने से पुण्य भी पाप बन जाता है। भगवान ने इन्द्र पुत्र बालि को मारा और सूर्य पुत्र सुग्रीव की रक्षा की। सूर्य पुत्र कर्ण को मारा, इन्द्र पुत्र अर्जुन की रक्षा की। भगवान कहते हैं कि हम ये नहीं देखते कि कौन किस का पुत्र है, हम यह देखते हैं कि सत्य की ओर, धर्म की ओर कौन खड़ा है? आप आज, अभी, अपने को इन तीन कसोटियों पर कसे।

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