माटी के प्रभाव -पं० भरत उपाध्याय

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जिस भूमि में जैसे कर्म किए जाते हैँ, वैसे ही संस्कार वह भूमि भी प्राप्त कर लेती है। इसलिए गृहस्थ को अपना घर सदैव पवित्र रखना चाहिए। मार्कण्डेय पुराण मेँ एक कथा आती है राम लक्ष्मण सीता जब वन में प्रवास कर रहे थे। मार्ग में एक स्थान पर लक्ष्मण का मन कुभाव से भर गया, मति भ्रष्ट हो गयी। वे सोचने लगे – कैकेयी ने तो वनवास राम को दिया है मुझे नहीं। मैं राम की सेवा के लिए कष्ट क्यों उठाऊँ?राम जी ने लक्ष्मण से कहा लक्ष्मण इस स्थल की मिट्टी अच्छी दिखती है, थोड़ी बाँध लो। लक्ष्मण ने एक पोटली बना ली। मार्ग में जब तक लक्ष्मण उस पोटली को लेकर चलते थे तब तक उनके मन में कुभाव ही बना रहता था। किन्तु जैसे ही रात्रि में विश्राम के लिए उस पोटली को नीचे रखते उनका मन राम सीता के लिए ममता और भक्ति से भर जाता था। 2-3 दिन यही क्रम चलता रहा जब कुछ समझ नही आया तो लक्ष्मण ने इसका कारण राम जी से पूछा श्रीराम ने कारण बताते हुए कहा भाई! तुम्हारे मन के इस परिवर्तन के लिए दोष तुम्हारा नहीँ बल्कि उस मिट्टी का प्रभाव है, जिस भूमि पर जैसे काम किए जाते हैं उसके अच्छे बुरे परमाणु उस भूमि भाग में और वातावरण में भी छूट जाते हैं।
जिस स्थान की मिट्टी इस पोटली में है, वहाँ पर सुंद और उपसुंद नामक दो राक्षसो का निवास था। उन्होंने कड़ी तपस्या के द्वारा ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके अमरता का वरदान माँगा। ब्रह्मा जी ने उनकी माँग तो पूरी की किन्तु कुछ नियन्त्रण के साथ। उन दोंनो भाइयो में बड़ा प्रेम था अतः उन्होंने कहा कि हमारी मृत्यु केवल आपसी विग्रह से ही हो सके। ब्रह्माजी ने वर दे दिया। वरदान पाकर दोनों ने सोचा कि हम कभी आपस में झगड़ने वाले तो हैं नही अतः अमरता के अहंकार में देवों को सताना शुरु कर दिया। जब देवों ने ब्रह्माजी का आश्रय लिया तो ब्रह्माजी ने तिलोत्तमा नाम की अप्सरा का सर्जन करके उन असुरों के पास भेजा। सुंद और उपसुंद ने जब इस सौन्दर्यवती अप्सरा को देखा तो कामांध हो गये तुम मेरी हो और अपनी अपनी कहने लगे तब तिलोत्तमा ने कहा कि मैं तो विजेता के साथ विवाह करुँगी। तब दोनो भाईयो ने विजेता बनने के लिए ऐसा घोर युद्ध किया कि दोनो आपस मे लड़ के मर गये। वे दोनों असुर जिस स्थान पर झगड़ते हुए मरे थे, उसी स्थान की यह मिटटी है। अतः इस मिटटी में भी द्वेष, तिरस्कार, और वैर का सिंचन हो गया है।

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