दुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला-अथश्री दुर्गा बत्तीस नामवली स्त्रोत :- पं0भरत उपाध्याय

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एक समय की बात है, ब्रह्मा आदि देवताओ ने पुष्प आदि विविध उपचारों से महेश्वरी दुर्गा का पूजन किया। इस से प्रसन्न होकर दुर्गतिनाशिनी दुर्गा ने कहा: देवताओं! मैं तुम्हारे पूजन से संतुष्ट हूँ, तुम्हारी जो इच्छा हो, माँगो, मैं दुर्लभ से दुर्लभ वस्तु भी प्रदान करुँगी। दुर्गा का यह वचन सुनकर देवता बोले: देवी! हमारे शत्रु महिषासुर को, जो तीनों लोकों के लिए कंटक था, आपने मार डाला, इस से सम्पूर्ण जगत स्वस्थ एवं निर्भय हो गया। आपकी कृपा से हमें पुनः अपने-अपने पद की प्राप्ति हुई है। आप भक्तों के लिए कल्पवृक्ष हैं, हम आपकी शरण में आये हैं, अतः अब हमारे मन में कुछ भी पाने की अभिलाषा शेष नहीं हैं। हमें सब कुछ मिल गया। तथापि आपकी आज्ञा हैं, इसलिए हम जगत की रक्षा के लिए आप से कुछ पूछना चाहते हैं। महेश्वरी! कौन-सा ऐसा उपाय हैं, जिस से शीघ्र प्रसन्न होकर आप संकट में पड़े हुए जीव की रक्षा करती हैं। देवेश्वरी! यह बात सर्वथा गोपनीय हो तो भी हमें अवश्य बतावें। देवताओं के इस प्रकार प्रार्थना करने पर दयामयी दुर्गा देवी ने कहा: देवगण! सुनो-यह रहस्य अत्यंत गोपनीय और दुर्लभ हैं। मेरे बत्तीस नामों की माला सब प्रकार की आपत्ति का विनाश करने वाली हैं। तीनों लोकों में इस के समान दूसरी कोई स्तुति नहीं हैं। यह रहस्यरूप हैं। इसे बतलाती हूँ, सुनो… दुर्गा ,दुर्गार्तिशमनी, दुर्गापद्विनिवारिणी,दुर्गमच्छेदिनी, दुर्गसाधिनी, हो दुर्गनाशिनी।।
दुर्गतोद्धारिणी,दुर्गनिहन्त्री दुर्गमापहा।दुर्गमज्ञानदा दुर्गदैत्यलोकदवानला।।
दुर्गमा ,दुर्गमालोका दुर्गमात्मस्वरूपिणी।दुर्गमार्गप्रदा, दुर्गमविद्या, दुर्गमाश्रिता।।
दुर्गमज्ञानसंस्थाना, दुर्गमध्यभासिनी।दुर्गमोहा, दुर्गमगा ,दुर्गमार्थस्वारूपिणी।।
दुर्गमासुरसंहन्त्री, दुर्गमायुधधारिणी।दुर्गमागीं, दुर्गमता ,दुर्गम्या, दुर्गमेश्वरी।।
दुर्गभीमा, दुर्गभामा, दुर्गभा, दुर्गदारिणी।नामावलिमिमां यस्तु दुर्गाया मम मानव:।।
पठेत सर्वभयान्मुक्तो भविष्यति प संशय:।।

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