




अगस्त्य ऋषि को जल तर्पण के साथ हीं आज से शुरू हो गया पितरों को जल देने का सिलसिला
जिला ब्यूरो, विवेक कुमार सिंह,
बेतिया/वाल्मीकिनगर। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से लेकर आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक सोलह दिनों का महालया होता है। यह समय पितरों को जल देने तथा उनके पुण्यतिथि के दिन श्राद्ध कर्म करने का होता है। रविवार की सुबह पितृ पक्ष से पूर्व अगस्त्य ऋषि को जल तर्पण करने के साथ ही पितृ पक्ष में पितरों को जल देने की विधान की शुरुआत हो गई। नारायणी के कालीघाट पर लोगों ने सर्वप्रथम अगस्त्य ऋषि को जल तर्पण किया। इसमें मध्याह्न व्यापिनी तिथि ग्रहण की जाती है। तदनुसार इस वर्ष भाद्र शुक्ल पक्ष पूर्णिमा 07 सितंबर से महालया प्रारंभ होगा। इस दिन अगस्त्य ऋषि के निमित्त तर्पण किया जाता है। पितृपक्ष में श्राद्ध के लिए मध्याह्न व्यापिनी तिथि ग्रहण की जाती है। इस बार पितरों के श्राद्ध,तर्पण आदि के लिए यह पितृपक्ष पखवारा 08 सितंबर सोमवार से प्रारंभ होगा। स्नान-दान सहित सर्व पितृ अमावस्या व पितृ विसर्जन 21 सितंबर को होगा। आचार्य कामेश्वर तिवारी ने बताया कि सनातन-हिन्दू धर्म में पितृ तर्पण,पिण्डदान एवं श्राद्ध को देव पूजन की तरह ही आवश्यक तथा पुण्य फलदायक माना गया है। देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी होता है। पितृपक्ष में अपने पितरों की पुण्यतिथि (मृत्यु तिथि) के दिन उनकी आत्मा की संतुष्टि के लिए किया जाने वाला श्राद्धकर्म उनके प्रति श्रद्धांजलि है। आचार्य ने बताया कि शास्त्रीय मान्यता के अनुसार पितृपक्ष में प्रथम दिन से तर्पण प्रारंभ कर जिस तिथि को जिनके पूर्वज मृत्यु को प्राप्त हुए हैं,उसी तिथि को उनके निमित्त पिंडदान व श्राद्ध आदि करना चाहिए। जिन लोगों को अपने पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं होती, उनके लिए अमावस्या तिथि को श्राद्ध करने का विधान है।