बिहार। शरीर को स्वस्थ व प्रसन्न रखने हेतु शास्त्रों में उपवासों का विधान बताया गया है,हम सबने उपवास किया होगा।
उपवास के प्रकार निम्नलिखित हैं
प्रात: उपवास – इस उपवास में सिर्फ सुबह का नाश्ता नहीं करना होता है और पूरे दिन और रात में सिर्फ दो बार ही भोजन करना होता है।
अद्धोपवास– इस उपवास को शाम का उपवास भी कहा जाता है और इस उपवास में सिर्फ पूरे दिन में एक ही बार भोजन करना होता है। इस उपवास के दौरान रात का भोजन नहीं किया जाता।
एकाहारोपवास– इस उपवास में एक समय के भोजन में सिर्फ एक ही चीज खाई जाती है,जैसे सुबह के समय अगर रोटी खाई जाए तो शाम को सिर्फ सब्जी खाई जाती है। दूसरे दिन सुबह को एक तरह का कोई फल और शाम को सिर्फ दूध आदि।
रसोपवास– इस उपवास में अन्न तथा फल जैसे ज्यादा भारी पदार्थ नहीं खाए जाते, सिर्फ रसदार फलों के रस अथवा साग-सब्जियों के जूस पर ही रहा
जाता है। दूध पीना भी मना होता है,क्योंकि दूध की गणना भी ठोस पदार्थों में की जा सकती है।
फलोपवास– कुछ दिनों तक सिर्फ रसदार फलों या भाजी आदि पर रहना फलोपवास कहलाता है। अगर फल बिलकुल ही अनुकूल न पड़ते हो तो सिर्फ पकी हुई साग-सब्जियां खानी चाहिए।
दुग्धोपवास– दुग्धोपवास को ‘दुग्ध कल्प’ के नाम से भी जाना जाता है। इस उपवास में सिर्फ कुछ दिनों तक दिन में 4-5 बार सिर्फ दूध ही पीना होता है।
तक्रोपवास– तक्रोपवास को ‘मठ्ठाकल्प’ भी कहा जाता है। इस उपवास में जो मठ्ठा लिया जाए, उसमें घी कम होना चाहिए और वो खट्टा भी कम ही होना चाहिए। इस उपवास को कम से कम 2 महीने तक आराम से किया जा सकता है।
पूर्णोपवास– बिलकुल साफ-सुथरे ताजे पानी के अलावा किसी और चीज को बिलकुल न खाना पूर्णोपवास कहलाता है। इस उपवास में बहुत सारे नियमों का पालन करना होता है।
साप्ताहिक उपवास– पूरे सप्ताह में सिर्फ एक पूर्णोपवास नियम से करना साप्ताहिक उपवास कहलाता है।
लघु उपवास– 3 से लेकर 7 दिनों तक के पूर्णोपवास को लघु उपवास कहते हैं।
कठोर उपवास– जिन लोगों को बहुत भयानक रोग होते हैं यह
उपवास उनके लिए बहुत लाभकारी होता है। इस उपवास में पूर्णोपवास के सारे नियमों को सख्ती से निभाना पड़ता है।
टूटे उपवास – इस उपवास में 2 से 7 दिनों तक पूर्णोपवास करने के बाद कुछ दिनों तक हल्के प्राकृतिक भोजन पर रहकर दोबारा उतने ही दिनों का उपवास करना होता है। उपवास रखने का और हल्का भोजन करने का यह क्रम तब तक चलता रहता है, जब तक कि इस उपवास को करने का मकसद पूरा न हो जाए।
दीर्घ उपवास– दीर्घ उपवास में पूर्णोपवास बहुत दिनों तक करना होता है जिसके लिए कोई निश्चित समय पहले से ही निर्धारित नहीं होता।इसमें 21 से लेकर 50-60 दिन भी लग सकते हैं।अक्सर यह उपवास तभी तोड़ा जाता है, जब स्वाभाविक भूख लगने लगती है अथवा शरीर के सारे जहरीले पदार्थ पचने के बाद ,जब शरीर के जरूरी अवयवों के पचने की नौबत आ जाने की संभावना हो जाती है।