हिंसा की बू किसको है मंजूर? कौन है जिम्मेवार?

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बिहार। रामनवमी के दिन से ही देश के कई हिस्सों में हिंसा भड़क उठी। अलग-अलग जगहों से अब भी हिंसा की खबरें सामने आ रही है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. अगर नज़र दौड़ाया जाए तो पिछले साल भी इस तरह के घटनाएं सामने आई थी। जिसमें कई जगह हिंसा के वारदात को अंजाम दिया गया था। हालांकि कुछ सालों पहले किसी धार्मिक जुलूस से इस तरह की खबरें बहुत कम ही देखने को मिलती थी। लेकिन पिछले साल से इस तरह की हिंसा आम हो रही है। इस बार रामनवमी के दिन से ही जिस तरह से पश्चिम बंगाल और बिहार से हिंसा की खबरें सामने आई वो अपने आप में झकझोर देने वाली है। जो कि किसी भी सभ्य समाज के लिए किसी हिसाब से ठीक नहीं है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने राज्य में पहले ही सबको सतर्क और आगाह कर दी थी कि राज्य में कुछ लोग हिंसा भड़का सकते हैं। साथ ही उसने लोगों से अपील भी की थी कोई भी रैली के दौरान हंगामा न करे. लेकिन उनकी बातों का कोई असर नहीं हुआ और पश्चिम बंगाल में बड़े स्तर पर हिंसा भड़क उठी। सवाल यहाँ ये खड़ा होता है की जब ममता बनर्जी को पहले से मालूम था कुछ लोग राजनीतिक फायदे के लिए हिंसा भड़का सकते हैं तो उनकी प्रशासन क्या कर रही थी? इतनी बड़ी घटना उनके राज्य में हुआ और कोई बड़ा एक्शन क्यों नहीं लिया गया? सवाल ये भी है कि ममता बनर्जी ने ऐसे लोगों से निपटने के लिए अपने प्रशासन को तैयार क्यों नहीं किया था? रामनवमी के तीसरे दिन भी बंगाल में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं रहा. जिसके वज़ह से बंगाल के हुगली में धारा 144 लगाना पड़ा इसी के साथ ही कुछ समय के लिए इंटरनेट सेवा भी बंद कर दी गई। बात अगर बिहार की करें तो यहाँ से हिंसा की खबरें बहुत कम ही सामने आती हैं। लेकिन जिस तरह से यहाँ भी इस बार हिंसा भड़की वो बिहार सरकार पर सवाल खड़े करती है। दुर्भाग्य की बात ये है की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी का हिंसा के एक दिन बाद बयान आता है। उसमें भी हिंसा करने वाले लोगों से निपटने के लिए किसी भी तरह की कोई भी ठोस बातेँ नहीं की गई थी। वहीं राज्य के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का तो कुछ पता नहीं. ऐसा मानो की बिहार जल रहा है और सेक्युलर की बात करने वाले तेजस्वी यादव कान में तेल डालकर कुंभकरण की तरह नींद में सो रहे हों। जब इस तरह के मामले होते हैं तो क्या इन लोगों की ज़िम्मेदारी नहीं बनती है कि तुरंत अपना बयान जारी करते हुए इनके द्वारा कड़ा एक्शन लिए जाएं,ताकि हिंसा में शामिल लोग दुबारा ऐसा दुस्साहस की सोच भी नहीं सके। सवाल तो ये भी है कि दंगाई में इतनी हिम्मत कहाँ से आ रही है की वो नीतीश कुमार जी के गृह जिला नालंदा में फायरिंग करते हैं जिनसे एक की मौत भी हो जाती है और सासाराम में बम विस्फोट भी करते हैं। बिहारशरीफ में हिंसा के दौरान दंगाई के द्वारा मदरसे को निशाना बनाकर उसमें आग लगा दी जाती है। जिसकी वजह से मदरसे में रखे किताब और कागज़ात सब जल कर राख हो जाते हैं। सवाल ये है कि हिंसा में शैक्षणिक संस्थान मदरसे का क्या कुसूर जिसे निशाना बनाया जाता है? सोमवार तक बिहार में 187 लोगों की गिरफ्तारी की जाती है। लेकिन अब भी सवाल है इतने गिरफ्तारी के बाद भी कौन लोग हैं जो हिंसा भड़काने की अब भी कोशिश कर रहे हैं? क्या हिंसा करने वाले इसी मंशा से उपद्रव कर रहे हैं ताकि मस्जिद और मदरसे को निशाना बनाया जा सके। मदरसे को आग में धकेलने वाले आपने आप को क्या साबित करना चाहते है? मदरसे तो एक शैक्षणिक संस्थान हैं वहाँ तो बच्चे को शिक्षा दी जाती है। इतिहास उठा कर देखें तो हिंसा में किसी एक पक्ष की जान नहीं जाती है। लेकिन फिर भी कौन लोग हैं जो इस हिंसा को बढ़ावा दे रहे हैं? क्या बिहार में हिंसा कर भाईचारगी को खराब और बिहार को बदनाम करने की कोशिश नहीं की जा रही है। लोगों को समझना होगा की हिंसा में किसी का फायदा नहीं होता और देश तभी विकास कर सकता है जब हिन्दू-मुस्लिम सभी मिलकर मुहब्बत के साथ साथ रहेंगे। हिंसा से सिर्फ और सिर्फ नुकसान होने वाला है। हिंसा से देश सिर्फ कमजोर होता है। वैसे जब हिंसा होता हैं तो मजलूमों पर मरहम लगाने से पहले राजनीतिक पार्टियां अपनी राजनीतिक रोटियां सेकती नज़र आती हैं। हिंसा के तीसरे दिन बिहार के डीजीपी का बयान आता है की कोई बख्शा नहीं जाएगा। ये होना भी चाहिए पर सवाल ये भी है की क्या गिरफ्तारी उन लोगों की होती है जो सच में हिंसा करते हैं? वही आगे शाहिद बाबा ने बताया कि इस तरह की घटना पर सरकार को कड़ी नज़र रखनी चाहिए और इस तरह के मामले में किसी को भी बख्शा नहीं जाना चाहिए। क्योंकि हिंसा में जान आम लोगों की जाती है, जिनका हिंसा से कोई वास्ता नहीं होता है और गिरफ्तारी भी उनकी होनी चाहिए जो असल में दोषी हों। कई मामलों में देखा जाता है की निर्दोष को गिरफ्तार कर जेल में कई सालों तक रखा जाता है और बाद में उसको कोर्ट द्वारा बाइज्जत बरी कर दी जाती है, लेकिन मुजरिम खुलेआम घूमता है और उसको कानून का कोई डर नहीं होता।

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