पूर्वजों को पितृ पक्ष में इस मंत्र के द्वारा सूर्य भगवान को अर्ध्य देने से यमराज प्रसन्न होकर पूर्वजों को अच्छी जगह भेज देते हैं।
ॐ धर्मराजाय नमः । ॐ महाकालाय नमः । ॐ म्रर्त्युमा नमः ।ॐ दानवैन्द्र नमः । ॐ अनन्ताय नमः ।
धर्म ग्रंथों के अनुसार, विधि- विधान पूर्वक श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। वर्तमान समय में देखा जाए तो विधिपूर्वक श्राद्ध कर्म करने में धन की आवश्यकता होती है। पैसा न होने पर विधिपूर्वक श्राद्ध नहीं किया जा सकता। ऐसे में पितृ दोष होने से कई प्रकार की समस्याएं जीवन में बनी रहती हैं। पुराणों के अनुसार, ऐसी स्थिति में पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त कर कुछ साधारण उपाय करने से भी पितर तृप्त हो जाते हैं।
न कर पाएं श्राद्ध तो करें इनमें से कोई एक उपाय, नहीं होगा पितृ दोष। जिस स्थान पर आप पीने का पानी रखते हैं, वहां रोज शाम को शुद्ध घी का दीपक लगाएं। इससे पितरों की कृपा आप पर हमेशा बनी रहेगी। इस बात का ध्यान रखें कि वहां जूठे बर्तन कभी न रखें। सर्व पितृ अमावस्या के दिन चावल के आटे के 5 पिंड बनाएं व इसे लाल कपड़े में लपेटकर नदी में बहा दें।
*गाय के गोबर से बने कंडे को जलाकर उस पर गूगल के साथ घी, जौ, तिल व चावल मिलाकर घर में धूप करें। विष्णु भगवान के किसी मंदिर में सफेद तिल के साथ कुछ दक्षिणा (रुपए) भी दान करें। कच्चे दूध, जौ, तिल व चावल मिलाकर नदी में बहा दें। ये उपाय सूर्योदय के समय करें तो अच्छा रहेगा। श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन कराएं या सामग्री जिसमें आटा, फल, गुड़, सब्जी और दक्षिणा दान करें। *श्राद्ध नहीं कर सकते तो किसी नदी में काले तिल डालकर तर्पण करें। इससे भी पितृ दोष में कमी आती है। श्राद्ध पक्ष में किसी विद्वान ब्राह्मण को एक मुट्ठी काले तिल दान करने से पितृ प्रसन्न हो जाते हैं। श्राद्ध पक्ष में पितरों को याद कर गाय को हरा चारा खिला दें। इससे भी पितृ प्रसन्न व तृप्त हो जाते हैं। सूर्यदेव को अर्ध्य देकर प्रार्थना करें कि आप मेरे पितरों को श्राद्धयुक्त प्रणाम पहुँचाए और उन्हें तृप्त करें। आजकल युवा वर्ग के मन में एक प्रश्न उठ रहा है कि यह श्राद्ध कर्म क्यों करना चाहिए। उनको बताते चलें कि श्रद्धा से पितरों के लिए किया गया कार्य श्राद्ध कहलाता है, मॉडर्न पद्धति से पढ़ कर ज्ञानी बने हुए कुछ लोग कहते फिरते हैं कि यह श्राद्ध कर्म बाबा जी लोग अपने खाने-पीने के लिए बना रखे हैं। वर्तमान में ऐसी हवा चल पड़ी है कि जिस बात को वह समझ जाए वह तो उनके लिए सत्य है, परन्तु जो विषय उनके समझ से परे होता है उसे वह पाखंड एवं गलत कह देते हैं। यह सब वही लोग बोलते हैं जो स्वार्थी होते हैं ,क्योंकि वह अपने मित्र मंडली के भोज का निमंत्रण स्वीकार कर लेंगे और अपने घर भोज का निमंत्रण दे देंगे। दिन रात अपने आनंद में व्यर्थ का ब्यय कर देंगे, परन्तु श्राद्ध कर्म के लिए उनके पास ना समय होता है ना धन होता है। उन्हें यह ज्ञात होना चाहिए की माता-पिता का ऋण जीते जी तो क्या? मरणोपरांत भी हम नहीं चुका सकते इसलिए उनके निमित्त श्राद्ध कर्म करके ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। भारतीय संस्कृति के मुताबिक, मनुष्य जन्म लेते ही देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण से ऋणी हो जाता है। इन तीनों ऋणों से मुक्ति पाने के लिए यज्ञ से देव ऋण से मुक्ति मिलती है। ऋषि ऋण के लिए वेद, गीता, और पुराण इत्यादि सुनना एवं पढ़ना चाहिए। इसके अलावा गीता का पाठ कराना चाहिए, सत्संग में जाना चाहिए, और अच्छे आचरण का पालन करना चाहिए। श्राद्ध से पितृऋण से मुक्ति मिलती है, श्राद्ध यानी श्रद्धा से किया गया कार्य!पितृ ऋण से मुक्ति के लिए पितृपक्ष में सभी उपाय किए जाने चाहिए। इसके अलावा घर के सभी सदस्यों से बराबर मात्रा में कुछ धन इकट्ठा करके मंदिर में दान करना भी पितरों को संतुष्ट करने का एक उपाय है।
पितृभ्यो नमः