पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महाभारत युद्ध के दौरान जब द्रोणाचार्य की मृत्यु हुई तो इसका बदला लेने के लिए उनके पुत्र अश्वत्थामा ने क्रोध में आकर ब्रह्मास्त्र चला दिया, जिसकी वजह से अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे की मौत हो गई ।तब भगवान श्री कृष्ण ने उत्तरा की संतान को फिर से जीवित कर दिया। बाद में उस बच्चे का नाम जीवित्पुत्रिका रखा गया। कहते हैं कि तभी से अपनी संतान की लंबी आयु के लिए माताएं जितिया का व्रत करने लगीं। ग्राम्य जीवन विकास की सतत मानसिकता, विज्ञान की तार्किकता एवं विश्वास के उद्घोषणा के साथ प्रत्येक मास प्रत्येक दिन और प्रत्येक क्षण में अपनी संस्कृति और समाज के सभ्यता को अनवरत बढ़ाए रखने का प्रयास करता है , इस समाज को जीवंत रखने और विश्व में इस समाज की संस्कृति का प्रभुत्व स्थापित करने की अद्भुत और विलक्षण मार्गदर्शन इस धरती पर शक्ति के अंशावतार से अवतरित माताओं के आशीर्वाद से ही प्राप्त होता है। ये माताएं अपने पिता अपने पति और अपने पुत्रों को सदैव पुरुषार्थ चतुष्टय से युक्त देखना चाहती हैं और इसके लिए वह सदा प्रयास भी करती हैं। माताओं द्वारा किया गया एक एक व्रत सदैव पुत्रों के जीवन में सहायक सिद्ध होता है। हमारे यहां कोई अपनी वीरता भी सिद्ध करने की कोशिश करते समय जरूर बोलता है कि आज फलाने की मां खर-जितिया नहीं की हैं आज उसका खैर नहीं । जीवित्पुत्रिका व्रत एक पवित्र और महत्वपूर्ण व्रत है जो माताएँ अपने पुत्रों की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए बिना जल पिए रखती हैं। यह व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर सितंबर या अक्टूबर में पड़ता है। इस व्रत के दिन, माताएँ अपने पुत्रों की लंबी उम्र और सुखी जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं और व्रत रखती हैं। वे पूरे दिन उपवास करती हैं और अगले दिन सुबह में व्रत तोड़ती हैं। जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व इस बात में है कि यह माताओं को अपने पुत्रों के प्रति अपने प्रेम और समर्पण को दर्शाने का अवसर देता है। यह व्रत माताओं को अपने पुत्रों की सुरक्षा और सुख-समृद्धि के लिए प्रार्थना करने का एक तरीका भी है। इस व्रत के दिन, माताएँ अपने पुत्रों को आशीर्वाद देती हैं और उन्हें सुखी और समृद्ध जीवन की कामना करती हैं। यह व्रत माता-पुत्र के बीच के पवित्र बंधन को मजबूत बनाने में मदद करता है। पंचांग के अनुसार, जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत 24 सितंबर दिन मंगलवार को नहाय खाय के साथ शुरू होगी. तदनुसार व्रत कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 25 सितंबर दिन बुधवार को रहेगा । उदयातिथि के आधार पर जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत 25 सितंबर बुधवार को ही रखा जाएगा पुनः 26 सितंबर दिन बुधवार को दानादि कर्म के सहित ही इस व्रत का पारण किया जाएगा । माताएं ब्रह्मांड की असीमित ऊर्जा की स्रोत हैं जो अपनी शक्ति के द्वारा अपने पुत्रों की यथा सम्भव रक्षा करती हैं उन्हें हमेशा यशस्वी-मनस्वी बनने के लिए प्रेरित करती रहती हैं भले ही पुत्र को अपनी मां से मेल हो या न हो। मार्कण्डेय पुराण में कहा भी गया है कि –
कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति।