जितना महत्व भगवान के स्मरण का है उतना ही मृत्यु को भी स्मरण करें -: पं-भरत उपाध्याय

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हम लोग डटकर साधना कर लें.!!
यहाँ जब तक हैं मौन रहकर भगवान् का चिंतन करें, नाम गुणादि कीर्तन का लाभ उठायें। संसार तो आगे भी रहेगा। लापरवाही न करें। जितना इम्पोर्टेन्ट भगवान् का स्मरण करना है, उतना ही मृत्यु का भी स्मरण करना है। अगला क्षण मिले न मिले।आपको अपने कमाने की चिंता होनी चाहिये। दूसरों की ओर न देखें। रूपध्यान का अभ्यास कीजिये। हर समय सोचिये कि श्यामसुंदर हमारे हृदय में और सबके हृदय में बैठे हैं।
अनावश्यक न बात सुनिए न कहिये। अनावश्यक कोई चिंतन मनन हानिकारक है। लगातार अभ्यास करने से वो हैबिट बन जाती है, फिर बिना किये रहा नहीं जायेगा। अभ्यास का असर बाद में भी रहता है। फिर जब भी आपको खाली समय मिलेगा, आप सोचेंगे कि मेरे पास दो घंटे हैं, साधना करके कुछ परमार्थ की कमाई कर लूं। अपने को दीन पतित मानकर साधना कीजिये, आंसू बहाइये, इससे अंतःकरण की शुद्धि होगी।
साधना करते समय घड़ी को नहीं देखना है। खाना खाते समय या नहाते समय भी हरि गुरु का स्मरण करें। शुद्ध वस्तु के स्मरण से मन शुद्ध होगा। गंदे संसार के स्मरण से मन और अशुद्ध होगा। मानव देह कभी कभी मिलता है, देवता भी चाहते हैं। कम से कम इतनी कमाई कर लो कि आगे मानव देह तो मिले। बाकी कमाई तो यहीं रह जायेगी। जायेंगे निराकार, आये थे साकार। सिर्फ कर्म साथ जायेंगे – ईमानदारी से जितनी साधना की।
दिखावटी साधना (अपने को भक्त दिखाने के लिए, सम्मान के लिए) नामापराध होता है। अपने को सबसे नीचा मानो और सब में भगवान् की भावना करो। किसी के प्रति दुर्भावना न करो, उसको कष्ट न दो। तुम्हारे श्यामसुंदर उसके अंदर भी बैठे हैं। वो क्या सोचेंगे? परपीड़ा सम नहीं अधमाई, न सुख दे सके तो कम से कम दुःख तो न दें। अपनी कमियों को सोचें और उनको निकालें। गुरु और शास्त्र वेद के वाक्य के अनुसार साधना करें। तृणादपि सुनीचेन तरोरपि सहिष्णुना। सहनशील बनो, दीन बनो। सब में भगवद्भाव रखो। छोटी छोटी बातों को फील मत करो। तुरंत अपने को बढ़िया साधक बनाओ जिसमें भगवान् का निवास जल्दी हो जाये, गुरु की कृपा जल्दी मिल जाये। मन और बुद्धि को ठीक करना पड़ेगा। रोज़ सोने के पहले 5 मिनट सोचो – हमने कहाँ गलती की, कल ये न हो पाए। राग द्वेष दोनों को मिटाना है – अगर राग द्वेष कहीं भी हुआ, तो भगवान् कहेंगे नमस्ते, हम दूर रहेंगे। इसलिये डटकर के ऐसे प्रयोग में लाइये जैसे आप शहर में चलते समय गाड़ियों से बचकर सावधान होकर चलते हैं। क्षण क्षण का सही उपयोग कर लो।
5-6 दिन अभ्यास करोगे तो महसूस करोगे कि कितना सुख मिल रहा है आत्मा को। देखोगे कि हम कहां से कहां पहुंच गये इतनी जल्दी।जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज.की कृपा सब पर बरसती रहे..!

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