मीठी बोली बोल रे प्राणी :- पं-भरत उपाध्याय

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गुणों में दोष देखना एकदम मृत्यु के समान है। कठोर बोलना या निंदा करना लक्ष्मी का वध है। अपने शब्दों के उपयोग पे ध्यान दिजिए क्योंकि लाठी या हथियार के प्रहार से केवल हड्डियां टूटती है शब्दों के प्रहार से अक्सर रिश्ते टूटते हैं कभी उदासी की आग तो कभी खुशियों का बाग हैं जिंदगी हंसता और रुलाता राग हैं जिंदगी कड़वे और मीठे अनुभवों का स्वाद हैं जिंदगी पर अंत मे सिर्फ किये हुए कर्मो का हिसाब है जिंदगी विद्या सीखने का प्रयत्न करो विद्या से सुख मिलता है यश और अतुलित कीर्ति प्राप्त होती है तथा ज्ञान स्वर्ग और उत्तम मोक्ष मिलता है अतः विद्यार्थी को विद्या पहले तो दुख का मूल जान पड़ती है किंतु पीछे वह बड़ी सुखदायनी होती है। कोई किसी को कितना भी समझा दे पर व्यक्ति अपनी समझ के अनुसार ही समझता है। कुछ चीजों को ज्यादा देर स्टैंड बाई मोड पर छोड़ देने पर वो खुद ही ऑफ हो जाती है। रिश्ते उनमें सबसे पहले आते हैं। प्रभु में विश्वास से बढ़कर कोई श्रेष्ठ चिंतन नहीं और हमारी चिंताओं का निवारण करने वाला साधन भी नहीं है इसलिए जीवन को चिंता में नहीं चिंतन में जिया जाना चाहिए किसी भी चिंता का एक मात्र समाधान है सकारात्मक चिंतन!
सत्पुरुष दुष्टों से याचना नहीं करते थोड़े धन वाले मित्रों से भी कुछ नहीं मांगते न्याय की जीविका से संतुष्ट रहते हैं प्राणों पर बन आने पर भी पाप कर्म नहीं करते विषाद काल में वे ऊँचे बने रहते हैं यानी घबराते नहीं और महत पुरुषों के पदचिन्हों का अनुसरण करते हैं। इस तलवार की धार के समान कठिन व्रत का उपदेश उन्हें किसने दिया , किसी ने नहीं वे स्वभाव से ही ऐसे होते हैं मतलब ये है कि सत्पुरुषों में उपरोक्त गुण किसी के सिखाने से नहीं आते उनमें ये सब गुण स्वभाव से या जन्मजात होते हैं। मन में कमजोर परिस्थितियां समस्या बन जाती हैं ।मन में स्थिर परिस्थितियां चुनौती बन जाती हैं ।मन में मजबूत परिस्थितियां अवसर बन जाती हैं ।आजकल लोग मन देख कर नही, मकान देख कर मेहमान आते है बिना कहे जो सब कुछ कह जाते हैं बिना कसूर के जो सब कुछ सह जाते हैं, दूर रह कर भी अपना फर्ज निभाते हैं। वही रिश्ते सच में अपने कहलाते हैं। हे स्वामी आपको जो सगुण निर्गुण और अन्तर्यामी जानते हो, वे जाना करे मेरेे हृदय को तो कोसलपति कमलनयन श्रीराम जी ही अपना घर बनावे। परिवार संगीत की तरह है जिसमें कुछ स्वर ऊंचे है और कुछ नीचे, लेकिन जब सब मिलते हैं तब एक सुंदर संगीत बनता है और एक खुशहाल परिवार बनता है।मेहनत आदत बन जाये तो कामयाबी की मुक़ददर बन जाती है।व्यक्ति कि मधुर वाणी ही सौदर्यता का सरोबर है। इसमें मन स्नान करके अवलोकन करता है, ईश्वर अंश जीव मनुष्य अगर दूसरे कि निंदा और बुराई करना छोड़ दे, तो स्वयं प्रेम और सहयोग भलाई करने कि प्रेरणा मिल जाती है। सत्संग ही वह साधन है जिसमे मानव समूह के जीवन की मूल उद्देश्य कि जानकारी मिलती है। फिर उसी जानकारी से सदमार्ग का रास्ता मिलने लगता है।हमारा अस्तित्व हमारे अपने कर्म से हैँ किसी के नजरिये से नहीं ।कभी दूसरे की ओर आस ना करें, कि कोई हमें अच्छा कहे। हमारा कर्म हमारा आत्म बल मन का विश्वास अगर मजबूत है अपने आप हम अच्छे हैँ। परिपक्वता इसमें नही कि आप कितना जानते हैं या कितने शिक्षित हैं ,बल्कि इसमें है कि आप किसी जटिल स्थिति को शान्ति से निपटने में कितने सक्षम हैं ।कौन कहता है आंसुओं में वजन नहीं होता। एक आंसू भी छलक जाता है तो मन हल्का हो जाता है। जिन्दगीं में किसी का साथ काफी है। कंधे पर किसी का हाथ काफी है। दूर हो या पास क्या फर्क पड़ता है ,अनमोल रिश्तों का तो बस एहसास ही काफी है। कभी-कभी अच्छे लोगों से भी गलतियां हो जाती है ,इसका ये मतलब नहीँ है कि वो बुरे हैं। बल्कि इसका ये मतलब है कि वो भी एक इंसान हैं। रिश्ते दोस्त और दवाएं हमारे जीवन में एक ही भूमिका निभाते हैं। तीनों दर्द में हमारा ख्याल रखते हैं.। मीठे शब्दों में बोली गई बात हितकारी होती है और उन्नति के मार्ग खोलती है ,लेकिन यदि वही बात कटुतापूर्ण शब्दों में बोली जाए तो दुःखदायी होती है और उसके दूरगामी दुष्परिमाण होते हैं।लकीरों को कभी मामूली ना समझें,ये माथे पर चिंता,हथेली पर, तकदीर,जमीन पर बंटवारा और रिश्तों में दरार बन जाती हैं। सरल और अहंकार रहित होना हमें अधिक शक्तिशाली और स्थिर बनाता है। महान बनने का कोई विद्यालय नहीं होता कर्मवाणी और विचार ही व्यक्ति को महान बनाते हैं।पत्तों के गिरने का भी एक मौसम पतझड़ होता है ,पर इंसानों के गिरने का कोई मौसम नहीं होता, उसको जहाँ पर अपना फायदा दिखाई देता है वही पर गिर जाता है। हीरा परखने वाले से पीड़ा परखने वाला ज्यादा महत्वपूर्ण है। किसी व्यक्ति की पीड़ा परखने वाला इंसान असल जिंदगी का जौहरी होता है ,अपने आने वाले कल में संभावना देखिए कठिनाईयां नहीं।

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