मानव ने मृत्यु को स्वाद में बदल लिया है:- पं०भरत उपाध्याय

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बगुला कभी मुर्दा नहीं खाता, गिद्ध कभी जिंदा नहीं खाता किंतु मानव है, कि अपने स्वाद के लिए जिंदा, मुर्दा दोनों खाता है। विचार करें-अपनी मृत्यु और अपनों की मृत्यु डरावनी लगती है!बाकी तो मौतकोenjoyहीकरताहै इंसान! मौत के स्वादका चटखारे लेता मनुष्य !थोड़ा कड़वा लिखा है पर मन का लिखा है। मौत से प्यार नहीं, मौत तो हमारा स्वाद है!न जाने कितने बल्कि अनगिनत स्वाद हैं मौत के। क्योंकि मौत किसी और की, और स्वाद हमारा..स्वाद से कारोबार बन गई मौत। मुर्गी पालन, मछली पालन, बकरी पालन, पोल्ट्री फार्म्सआदि। नाम “पालन” और मक़सद “हत्या! स्लाटर हाउस तक खोल दिये। वो भी ऑफिशियल। गली -गली में खुले नानवेज रेस्टोरेंट, मौत का कारोबार नहीं तो और क्या हैं ? मौत से प्यार और उसकाकारोबार इसलिए क्योंकि मौत हमारी नही है।जो हमारी तरह बोल नही सकते, अभिव्यक्त नही कर सकते, अपनी सुरक्षा स्वयं करने में समर्थ नहीं हैं,उनकीअसहायता कोहमनेअपना बल कैसे मान लिया ?कैसे मान लिया कि उनमें भावनाएं नहीं होतीं ? या उनकी आहें नहीं निकलतीं ? डाइनिंग टेबल पर हड्डियां नोचते बाप बच्चों को सीख देते हैं, बेटा! कभी किसी का दिल नहीदुखाना ! किसी की आहें मत लेना ! किसी की आंख में तुम्हारी वजह से आंसू नहीं आना चाहिए ! बच्चों में झुठे संस्कार डालते बाप को, अपने हाथ मे वो हड्डी दिखाई नही देती, जो इससे पहले एक शरीर थी, जिसके अंदर इससे पहले एक आत्मा थी, उसकी भी एक मां थी .!जिसे काटा गया होगा ? जो कराहा होगा ? जो तड़पा होगा ? जिसकी आहें निकली होंगी ?
जिसने बद्दुआ भी दी होगी ? कैसे मान लिया, कि जब जब धरती पर अत्याचार बढ़ेंगे तो भगवान सिर्फ तुम इंसानों की रक्षा के लिए अवतार लेंगे !क्या मूक जानवर उस परमपिता परमेश्वर की संतान नहीं हैं !क्या उस ईश्वर को उनकी रक्षा की चिंता नहीं है ? धर्म की आड़ में उस परमपिता के नाम पर अपने स्वाद केलिए,कभी दुर्गा मां या भैरव बाबा के सामने बकरे की बली चढ़ाते हो,कहीं तुम अपने स्वाद के लिए मछली का भोग लगाते हो। कभी सोचा !क्या ?ईश्वर का स्वाद होता है ? क्या है उनका भोजन ? किसे ठग रहे हो ?भगवान को ?
मंगलवारकोनानवेजनहीखाता .आज शनिवार है इसलिए नहीं ..! हमारे बच्चों को अगर कोई ऐसे खाए तो हमें कैसा लगेगा ?
कर्म का फल मिल कर रहता है ये याद रखना चाहिए!ईश्वर ने बुद्धि सिर्फ तुम्हे दी! ताकि तमाम योनियों में भटकने के बाद मानव योनि में तुम जन्म- मृत्यु के चक्र से निकलने कारास्ता ढूँढ सको!लेकिन तुमने इस मानव योनि को पाते ही स्वयं कोभगवान समझ लिया! प्रकृति के साथ रहते हो,प्राकृतिक पूजा करते होऔर गर्व से कहते हो या लिखते हो NatureLover
प्रकृति फल-फूल दें तो उसके खुशी मे तरह तरह के उत्सव/त्योहार मनातें हैं सभी। परंतु अपनी खुशी के लिए दूसरे का खुशियां छीन लेते हो , बेदर्दी से कत्ल/हलाल करते हो। क्या वह बेजुबानों को दर्द नहीं देता, जैसा दर्द अपने होवे ,वैसे दर्द विराने। जैसा दर्द आपको है वैसा दर्द दूसरों को भी होता है।
प्रकृति के आनंद का हक सबको है बेजुबानों जीव-जंतुओं को भी और इंसान को भी, परमेश्वर ने इंसान को सबसे बुद्धिमान बनाया, ताकि इंसानियत के नाते सबका अनुभव समझ सके।
इस दुनिया में तो इंसान ही इंसान को नहीं समझ रहा ,तो बेजुबानों की भावनाएं क्या समझेंगे।फिर भी सबसे प्रार्थना है दया करना सीखें।

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