जीवन में स्त्री का महत्व :- पं०भरत उपाध्याय

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स्त्री जल की तरह होती है, जिसके साथ मिलती है उसका ही गुण अपना लेती है। स्त्री नमक की तरह होती है, जो अपना अस्तित्व मिटाकर भी अपने प्रेम -प्यार तथा आदर- सत्कार से परिवार को अनुरूप बना देती है। माला तो आप सब ने देखी होगी, तरह-तरह के फूल पिरोये हुए, पर शायद ही कभी किसी ने अच्छी से अच्छी माला में अदृश्य उसे सूत को देखा होगा ,जिसने उन सुंदर-सुंदर फूलों को एक साथ बांधकर रखा है। लोग तारीफ तो उस माला की करते हैं, जो दिखाई देती है !मगर तब उन्हें उसे सूत की याद नहीं आती जो अगर टूट जाए तो सारे फूल इधर-उधर बिखर जाते हैं ।स्त्री उस सूत की तरह होती है जो बिना किसी चाह के, बिना किसी कामना के, बिना किसी पहचान के, अपना सर्वस्व खो कर भी किसी के जान- पहचान की मोहताज नहीं होती है। शायद इसीलिए दुनिया राम के पहले सीता को और श्याम के पहले राधे को याद करती है। अपने को विलीन करके पुरुषों को संपूर्ण करने की शक्ति भगवान ने स्त्रियों को ही दी है। सत्य कहा गया है की चुप रहने से काम चलता है ,तो मत बोलो! इशारे से काम चलता है ,तो शब्द का प्रयोग मत करो !धीमी वाणी से काम चलता है तो चिल्ला कर मत बोलो।

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