श्रेष्ठ लक्ष्य की शुरुआत सदैव उपहास से ही होती है। लक्ष्य श्रेष्ठ होते हुए भी यदि किसी के द्वारा बार – बार आपका उपहास किया जा रहा है तो समझ लेना चाहिए कि वो आपको सफल होता नहीं देखना चाहता है।किसी को गिराने का सबसे सशक्त हथियार है कि उसका अथवा उसके द्वारा किये जा रहे कार्य का उपहास कर सामने वाले के मनोबल को कमजोर किया जाये।
जहाँ उपहास से बात नहीं बनती फिर वहां से विरोध जन्म लेना शुरु करता है। दुनिया हर उस महान कार्य का विरोध करती है, जो वह स्वयं नहीं कर सकती। मनुष्य मन बड़ा ही ईर्ष्यालु होता है इसलिए दूसरे की यश, कीर्ति, मान, प्रतिष्ठा वह कभी देख ही नहीं सकता। धैर्य एवं निष्ठा के साथ अपने मार्ग पर अग्रसर रहें, लोग हँसेगे, लोग जलेंगे मगर आपकी यश – कीर्ति के प्रकाश को धूमिल नहीं कर पायेंगे। खुद को ज्ञानी और धनवान समझकर परमात्मा को भूलने की गलती कभी मत करें ।क्योंकि कल आपके कर्म देखता है दीवारों पर टंगी डिग्रियां कंधों पर लगे मेडल या तिजोरी में भारी दौलत नहीं। इच्छाएं अनंत होती हैं और संसाधन सीमित। जो लोग इनके मध्य संतुलन बना लेते हैं, उनका जीवन सुखी हो जाता है। अपने संस्कार, व्यवहार, विचार और कर्म को उत्तम श्रेष्ठ तथा आदर्श बनाएं। भक्त भगवान के छोटे बालक हैं, और ज्ञानी बड़े बालक हैं। जैसे मां को छोटे बड़े सभी बालक समान रूप से प्रिय लगते हैं , पर वह संभाल छोटे बालक की ही करती है।बड़े कि नहीं! कारण की छोटा बालक सर्वथा मां के ही आश्रित रहता है अतः उसके संभाल की जितनी आवश्यकता है उतनी बड़े के लिए आवश्यकता नहीं है। ऐसे ही भगवान अपने आश्रीतभक्त की पूरी संभाल करते हैं,और स्वयं उसके योगक्षेम का बहन करते हैं।